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प्रश्नकर्ता: आचार्य जी, हम लोगों का देश के प्रति जो लगाव होता है, जो प्रेम होता है, और जैसा कि हम सब कहते भी हैं कि हमारा देश महान है, मुझे अपने देश के लिए ये करना है, वो करना है — सर्वप्रथम, आखिर यह देश है क्या?

क्या हमारा देश, भारत, एक भौगोलिक क्षेत्रफल है, या भारत मतलब कुछ और भी है? आखिर ये भारत है क्या? मुझे समझाने की कृपा करें।

आचार्य प्रशांत: भारत क्या है ये इस पर निर्भर करता है कि तुम क्या हो। तुम अगर एक बंदर भर हो तो भारत एक जंगल भर है। तुम मवेशी हो तो भारत चारागाह है, चरो। तुम व्यक्ति हो अगर, लेकिन राजनीति से भरे हुए, तो भारत एक राजनैतिक इकाई है — राज्यों का, प्रदेशों का संघ है। देखने वाले की दृष्टि पर निर्भर करता है भारत।

लेकिन अगर शरीर हो कर देख रहे हो भारत को, भारत तुम्हारी दृष्टि में विश्व के मानचित्र पर खिंची हुई कुछ लकीरों का नाम है, तो फिर ये बोलने का तुम्हें कोई हक नहीं है कि भारत महान है। लकीरें महान कैसे हो गयीं, भाई? और लकीरें तो बदलती रहती हैं। भारत की जो राजनीतिक स्थिति आज है वो तो बड़ी ताज़ी-ताज़ी है, १९४७ के बाद की है। ७० साल दुनिया के इतिहास में कुछ भी नहीं होते, पलक झपकने बराबर होते हैं। थोड़ा पीछे जाओगे तो इस राजनैतिक नक्शे को लगातार बदलता हुआ पाओगे। १९४७ के बाद भी तो बदला है। गोवा, सिक्किम, ४७ में ये थे क्या? उसमें कुछ विशेष महानता नहीं। एक ऐसे नक्शे में जिसको इंसान ने ही खींचा है और इंसान की ही करतूतों से वो बदल भी जाता है, कितनी महानता हो सकती है? हमारा खींचा हुआ नक्शा है, उसमें उतनी ही महानता होगी न जितनी हम में है।…

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org