विचार तीन प्रकार के
प्रश्नकर्ता: सर, आपने कहा कि समझ आ जाए, तो जीवन में सोचने-विचारने की आवश्यकता कम हो जाती है। पर क्या समझ विकसित करने के लिए सोचने-विचारने की आवश्यकता नहीं है? क्या सोचने-विचारने का जीवन में महत्व है?
आचार्य प्रशांत: सोचने का जीवन में महत्व है, पर यह महत्व तभी तक है, जब वह अपने आप को ख़त्म कर दे।
देखो मन की गतिविधियाँ तीन स्तरों पर होती हैं। सबसे निचला जो स्तर होता है, उसको कहते हैं, सोचने की असमर्थता, उसको कहा जाता है अविचार। इस स्तर पर तुम क़रीब-क़रीब पत्थर जैसे हो, जिसके पास विचारणा की शक्ति ही नहीं है, वह मन की सबसे निचली अवस्था होती है।
उसके ऊपर आती है अवस्था जिसको हम निरुद्देश्य विचारणा (रैंडम थॉट्स) कहते हैं। हममें से ज़्यादातर लोग उसी में जीते हैं जहाँ पर सोच निरुद्देश्य है, बस सोचे चले जा रहे हैं। तुम बैठे हो, कुछ सोच रहे हो, और बस सोच रहे हो। इसको फ्रायड ने नाम दिया था- निरुद्देश्य विचारणा का सिद्धांत (प्रिंसिपल ऑफ़ रैंडम असोसिएशन)।
तुम ने काला रंग देखा और उसे देखकर तुमको सड़क का काला रंग याद आ गया। सड़क को देखकर तुम्हें अपना घर याद आ गया क्योंकि तुम सड़क से होकर जाते हो। घर याद आया तो घर के लोग याद आ गये, उनको देखा तो कुछ और याद आ गया। एक निरुद्देश्य चक्र जिसका कोई तर्क नहीं, कोई ठिकाना नहीं, ये बस चल रहा है। तो ये मन की दूसरी अवस्था होती है, ये है निरुद्देश्य विचारणा (रैंडम थॉट्स)। और पहली कौन-सी होती है?
प्र१: सोचने-विचारने की असमर्थता।