विकसित मन ही दोस्ती कर सकता है

प्रश्न: पापा कहते हैं दोस्त कुछ नहीं होते। दोस्तों पर ध्यान मत दिया करो। इनके साथ मत घूमा करो। “मैं खुद नहीं जाता। किसी के साथ जाते हुए देखा है तूने मुझे?” पर मुझे लगता है दोस्त भी होने ज़रूरी हैं। पर एक तरफ़ मैं भी सोचता हूँ कि विश्वास कैसे करूँ? क्योंकि काफ़ी बार मुझे लगा कि मुझे धोखा दिया गया है और मेरी इच्छाओं की पूर्ती नहीं हुई है। फ़िर लगता है पापा भी सही कहते हैं। तो परेशान हूँ इस विषय में। आप ही सहायता करें।

आचार्य प्रशांत: क्या नाम है आपका?

प्र: कुणाल।

आचार्य: कुणाल, पापा बिलकुल ठीक कहते हैं। पापा गलत नहीं कहते पर पापा अधूरी बात कह रहे हैं। अधूरी बात इसलिए कह रहे हैं क्योंकि इंटरवल के बाद की कहानी एक वयस्क कहानी है। इंटरवल से पहले की कहानी का ‘U’ प्रमाणपत्र है तो वो उन्होंने तुम्हें सुना दी। इंटरवल से बाद की कहानी का ‘A’ प्रमाणपत्र है। वो तुमको सुना नहीं रहे हैं क्योंकि उनको लग रहा है तुम अभी बच्चे हो।

(श्रोतागण हँसते हैं)

पापा को पूरी कहानी पता है पर अभी तुम्हें सुनाएंगे नहीं वो। जब तक तुम साबित नहीं करोगे कि पापा मैं समझदार हूँ।

प्र: आप सुना दीजिए सर।

आचार्य: मैं सुना दूँ? पापा को पता लग गया तो मेरी पिटाई करेंगे। कहेंगे मेरे बच्चे को वयस्क कहानी सुना दी।

प्र: सर आप सुना दीजिये। (निवेदन करते हुए)

आचार्य: सुना दूँ? छोटे बच्चे को सुरक्षा की ज़रूरत होती है। बड़े से बड़ा स्कॉलर भी, दुनिया…

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org