ये दुनिया ये महफ़िल मेरे काम की नहीं
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उनको ख़ुदा मिले हैं ख़ुदा की जिन्हें तलाश
मुझको बस इक झलक, मेरे दिलदार की मिले।
ये दुनिया ये महफ़िल मेरे काम की नहीं
मेरे काम की नहीं।।
आचार्य प्रशांत: अमर यादव ने नेतृत्व किया है, कह रहे हैं, “उनको ख़ुदा मिले हैं, ख़ुदा की जिन्हें तलाश, मुझको तो इक झलक मेरे दिलदार की मिले।”
कह रहे हैं, “क्या दिलदार ख़ुदा से बढ़कर हैं?”
हाँ, बिलकुल है।
राम बुलावा भेजिया, दिया कबीरा रोये।
जो सुख साधु संग में, सो बैकुंठ न होय।।
~ कबीर
ख़ुदा थोड़े ही चाहिए तुम्हें, चैन चाहिए।
ख़ुदा चैन नहीं देता, जहाँ चैन मिल जाये वहाँ ख़ुदा है।
अगर ख़ुदा को पहले रखोगे तो तुम ख़ुदा को ढूँढोगे कैसे? क्योंकि, तुम तो बेचैन हो और बेचैन आदमी कुछ भी ठीक ठाक ख़ोज नहीं सकता। बेचैन आदमी को तो ये देखना है कि उसे उसकी जो एक माँग है, उसकी पूर्ति कहाँ मिलेगी और बेचैन आदमी की एक ही माँग है — चैन।
जहाँ चैन मिल जाये वहाँ ख़ुदा जानें।
यही कारण है कि जिन्हें वास्तव में मिला है, उन्होंने कई बार बड़ी विस्मयकारी बातें कहीं हैं।
“मैं क्यों कर जावां काबे नु” बुल्लेहशाह हैं। कह रहे हैं, काबा नहीं जाना। मुझे तो तखतहज़ारे में ही मिल जाता है।
तखतहज़ारे में कौन? शाह इनायत हैं गुरु उनके। कह रहे हैं कि जाना ही नहीं है दूर। जहाँ चैन मिले, ख़ुदा तो वहाँ है ना। मुझे मेरे गुरु के सानिध्य में चैन मिल जाता है, मैं क्यों इधर-उधर जाऊँगा? कहाँ पूजा करूँगा? पूजा भगवान की होती है।
भगवान वो जो सुकून दे दे। जब सुकून मिल ही रहा हो भगवान कहीं और क्यों तलाशूँ?
बात खत्म।
“जो सुख साधू संग में, सो बैकुंठ न होय।”
राम बुला रहे हैं और कबीर रो रहे हैं, अजीब बात है, कबीर जीवन भर राम के लिए तत्पर रहे, प्यासे रहे, फिर कहते हैं।
“राम बुलावा भेजिया, दिया कबीरा रोये।”
नहीं जाना, क्यों नहीं जाना? इसलिए नहीं कि राम नहीं चाहिए, इसलिए कि राम मिल गए हैं, पर कहाँ? साधु-संग में। राम और कहाँ होते हैं? जीसस का वचन है, कहते हैं, “जहाँ पर कुछ लोग बैठकर के मेरा नाम ले रहे होंगे, जान लेना मैं वहीं पर हूँ और कहीं नहीं पाया जाता…