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डिप्रेशन या अवसाद का कारण

“आज से पाँच दशक पहले जितनी एंग्ज़ायटी एक मानसिक रोगी को होती थी, उतनी एंग्ज़ायटी आज आम है — स्कूलों में, कॉलेजों में और ये बात अनुमान के आधार पर नहीं है, ये आँकड़े हैं, ये नम्बर्स हैं, ये रिसर्च(अनुसंधान) है, ये डेटा(तथ्य) हैं। हम सब किसी-न-किसी तरीके से परेशान हैं, निराश हैं, कोई चिंता है, दिमाग पर बोझ है। ये बात कहने की नहीं है, ऐसा हो रहा है। परीक्षण करके अगर नापा जाए तो हम सबका यही हाल निकलेगा। कोई चीज़ है जो परेशान करे ही जा रही है।

बात क्या है? दो पक्ष हैं उसके, दोनों को समझ लेंगे।

पहली चीज़ ये है कि वैज्ञानिक क्रांति के बाद, जितने विषय हो सकते हैं पाने के लिए, उनमें बेतरतीब वृद्धि आ गयी है। आज से पचास साल पहले, जितनी चीज़ें हो सकती थीं कि जिन्हें पाया जा सकता था, आज उससे सौ-गुना चीज़ें मौजूद हैं। ना सिर्फ़ वो मौजूद हैं, वो तुम्हें हर समय अपने आपको प्रदर्शित कर रही हैं। तो उपभोग करने की जितनी वस्तुएँ उपलब्ध हैं, उनमें बड़ी तेज़ी से वृद्धि हुई है।

एक आदमी जिन चीज़ों को हासिल कर सकता था, वो पचास साल पहले की अपेक्षा आज सौ गुनी हैं। और ना सिर्फ़ वो सौ गुनी हैं, वो तुम्हारे पास हर तरीके के माध्यम से पहुँच रही हैं, प्रदर्शित हो रही हैं, विज्ञापित हो रही हैं।

इसका क्या मतलब है?

अब एक इंसान है, वो इस कुर्सी पर बैठा हुआ है, उसको बार-बार दिख रहा है कि दुनिया में हासिल करने के लिए, उपभोग करने के लिए, भोगने के लिए इतनी चीज़ें हैं और वो चीज़ें बारबार, बार-बार उसके दिमाग पर लाई जा रही हैं, एक तरह से उसके दिमाग पर…

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant
आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

Written by आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org

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