मां हि पार्थ व्यपाश्रित्य येऽपि स्युः पापयोनयः। स्त्रियो वैश्यास्तथा शूद्रास्तेऽपि यान्ति परां गतिम्॥ हे अर्जुन! स्त्री, वैश्य, शूद्र तथा पापयोनि चाण्डलादि जो कोई भी हों, वे भी मेरे शरण होकर परमगति को हीं प्राप्त होते हैं। (श्रीमद्भगवद गीता, अध्याय ९, श्लोक ३२) प्रश्नकर्ता: मेरे दो प्रश्न हैं, पहला यह कि…