ईर्ष्या और द्वेष के विचार क्यों आते हैं?

प्रश्नकर्ता: ईर्ष्या और द्वेष के विचार मन में क्यों आते हैं?

आचार्य प्रशांत: क्योंकि ईर्ष्या और द्वेष ही मन है। मन इन्हीं चीज़ों से निर्मित है और इन्हीं चीज़ों को आकृष्ट करता रहता है। मन कोई साफ-सुथरी जगह नहीं है। इन्हीं के साथ तुम पैदा हुए थे। हाँ, बाहर से जब कोई उत्तेजना नहीं मिलती तो ईर्ष्या और द्वेष छुपे पड़े रहते हैं। बारूद भीतर ही भरा होता है, बस बाहर से चिंगारी मिलती है पर दोष चिंगारी का नहीं है।

तुम अब ये तय करो कि मन को साथ लेकर चलना है या नहीं?

जिसने ये देख लिया कि मन अपनी ही चाल चलता है, वो मन की संगति करना छोड़ देता है। ये तुम्हें तभी मिलेगा जब तुम अमृत के साथ गहराई से जुड़ जाते हो। फिर तुम वृत्तियों को अपनी ऊर्जा देना बंद कर देते हो। राग और द्वेष वृत्ति रूप में मन में सदा ही बैठे रहते हैं पर उन्हें ऊर्जा तुम्हारी ओर से ही मिलती है। वृत्ति के पास इरादे होते हैं पर अपनी कोई ऊर्जा नहीं होती।

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org