अभिभावकों से स्वस्थ सम्बन्ध

‘उम्र’ और ‘अनुभव’ दोनों ही बिलकुल व्यर्थ बातें हैं। एक बात बताओ मुझे कि तुम पचास साल तक सोते रहो तो उससे तुम में बड़ा ज्ञान उठ जाएगा? समय तो बीता, पचास साल तो बीते, पर तुमने देखा क्या है? तुम तो सोते ही रह गए! तुम्हारी आँखें तो बंद ही रहीं, तुम मान्यताओं में ही घिरे रहे।

उम्र के बढ़ने से क्या हो जाता है? जानते हो दुनिया के आम आदमी की औसत मानसिक उम्र कितनी है?

तेरह साल।

आदमी का शारीरिक विकास तो हो रहा होता है पर उसका दिमाग ठस पड़ा होता है। एक बात गौर से समझ लो कि उम्र को और अनुभव को बिलकुल महत्व मत देना।उम्र का महत्व है, न अनुभव का महत्व है। महत्व है बोध का, महत्व है तुम्हारी जाग्रति का और जाग्रति, समय की मोहताज नहीं होती है।

तुम जिस भूमि पर बैठे हो, वहाँ तो उम्र को बिलकुल ही महत्व नहीं दिया गया। बुद्ध के पिता आ कर बुद्ध के चरण स्पर्श करते हैं। गीता है, अष्टावक्र की जिसमें अष्टावक्र, राजा जनक को उपदेश दे रहे हैं और अष्टावक्र की उम्र उस समय मुश्किल से ग्यारह-बारह साल की है। उम्र की क्या कीमत है?

जिस भूमि पर तुम बैठे हो ना, इसने उम्र को कभी कोई कीमत नहीं दी, इसने बोध को कीमत दी है।

क्यों माँ-बाप के फैसलों के आगे झुकना पड़ता है, चाहे हमारा फैसला सही ही हो?

तुम्हें झुकना इसीलिए पड़ता है क्योंकि तुम्हारे मन में लालच और स्वार्थ है, अन्यथा तुम्हें कौन झुका सकता है। तुम कुछ सुविधाओं के मोहताज हो और तुम नहीं चाहते कि तुमसे वो सुविधाएँ छिन जाएँ; इस कारण तुम…

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org