सोने का हक़

मन शांत

सब के सोने पर मेरा एकांत

एक बार फिर वही आदिम नींद पलकों पर आए

एक बार फिर वही इच्छा मन पर छाए

कि सोऊँ ऐसे कि फिर जागूँ न जगाए ।

पर मेरा नीरव चैन जागृति की भेंट चढ़ जाना है

तुमने सदा सूरज और सुबह को सत्य माना है

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org