सत्य: मूल्यवान नहीं, अमूल्य

वाज़े पंच शब्द तित तित घरी सभागे

वक्ता: उस सौभाग्यशाली घर में पाँच शब्दों का वादन रहता है। न होने से, होने का जो बदलाव है, वो गतिमान हो जाने का बदलाव है। वो गति में आ जाने का बदलाव है। जब तक गति नहीं है, पदार्थ भी नहीं है। हिल-डुल कर, एक स्थान से दूसरे स्थान पर जा कर, निर्माण होता है। कैसे आता है ‘न कुछ’ से कुछ भी? वह गति करता है। एक व्रत को लीजिए, उसकी परिधि है, उसका केंद्र है। उसका जो केंद्र है, सर्किल का सेंटर, आपने कभी ध्यान नहीं दिया होगा कि वो होता ही नहीं है।

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org