ग्रन्थों के साथ सत्संग हो सकता है, तर्क या बहस नहीं

प्रश्न: सर, हम जब भी कोई फोटोग्राफ खींचते हैं तो वो फोटोग्राफ एक हिस्से की होगी, वो पूरे की नहीं हो सकती। एक हिस्से ही आएगा, पूरे का नहीं आ सकता। जब मुझे दिख ही एक हिस्सा रहा है तब मैं उसी चीज़ के बारे में बताऊँगा, बाकी का मुझे नहीं दिखा रहा है, उसका मुझे कुछ नहीं पता है।

वक्ता: बिलकुल। बिलकुल। इसका मतलब ये भी है कि हम जो भी संवाद करते हैं, इनको बहुत दूसरे तरीके से सुनना पड़ेगा। क्योंकि हम जितनी भी बातें कर रहे हैं उनको काटना बड़ा आसान हो जाएगा। हम बातें कर रहे हैं ‘पूर्ण’ की, और प्रयोग कर रहे हैं ‘शब्द’। तो निश्चित रूप से हम जितनी भी बातें कर…

आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org