पूरे जीवन में प्रतिपल
और क्या हो रहा है?
सुलग ही तो रहे हो!
धुआँ-धुआँ हो तुम,
इस खातिर नहीं जन्मे थे,
ये आवश्यक नहीं था!
तुम्हें जन्म इसलिए नहीं मिला था कि
तुम इतनी सड़ी-गली तरह से
इसको बिता दो।
पूरे जीवन में प्रतिपल
और क्या हो रहा है?
सुलग ही तो रहे हो!
धुआँ-धुआँ हो तुम,
इस खातिर नहीं जन्मे थे,
ये आवश्यक नहीं था!
तुम्हें जन्म इसलिए नहीं मिला था कि
तुम इतनी सड़ी-गली तरह से
इसको बिता दो।
मैंने बड़े आध्यत्मिक लोग देखें हैं
जो बाहर-बाहर से कुछ और जीते हैं
और भीतर कुछ और है।
उनको शायद यही लगता होगा कि
ग्रंथों ने यही तो सिखाया है —
अभिनय करना।
और बहुत गुरु हुए हैं
जिन्होंने भी यही बात कही है।
उन्होंने कहा है,
“जीवन ऐसे जियो
…
मेरे यहाँ कोई बात नहीं
यहाँ तो खरे-खरे सवाल हैं।
दिन भर जो करते हो
उसमें डर कितना शामिल है?
प्रेम है अपने काम से?
जिनके साथ रहते हो उनसे रिश्ते कैसे हैं?
विपरीत लिंगी को देखते हो
तो मन में क्या ज्वार-भाटा उठता है?
धन के प्रति क्या रवैया…
तुम तैराक हो और जीवन एक प्रवाह, एक नदी है।
यदि तैरना आता है तो ये पानी पार निकलने में तुम्हारी सहायता करेगा।
तैरकर इसे पार कर जाओगे, दूसरे तट पर पहुँच जाओगे।
और तैरना नहीं आता तो इसी पानी, प्रवाह, नदी में डूब जाओगे।
जीवन न अच्छा है, न…
सही काम को कल आपने जिस कल पर टाला था, वो कल आज है।
जी, आज भी कल पर टालना है?
जब आपके पास
जीने के लिए कोई
ऊँची वजह नहीं होती,
तब आप किसी और व्यक्ति पर
आश्रित हो जाते है।