निर्पंथी को भक्ति है, निर्मोही को ज्ञान। निर्द्वंद्व को मुक्ति है, निर्लोभी निर्वाण।। ~ कबीर साहब आचार्य प्रशांत: चार हिस्से हैं इसके, चारों को अलग-अलग बोलिए। एक आदमी पहले एक ही बोले, फिर अगला दूसरा। “निर्पंथी को भक्ति है” — क्या अर्थ हुआ? प्रश्नकर्ता१: सर, यहाँ निर्पंथी से अर्थ होता…