फ़िल्में हैं मज़हब हमारा
न गीता न कुरान, हमें मज़हब सिखाता है शाहरुख़ खान।
धर्म का अर्थ होता है गहरी जिज्ञासा, सच्चाई की अटूट खोज। और वो खोज जब तुम करोगे तो तुम्हें पता चलेगा की बेचैनी माने क्या होता है, दूसरों के लिए दुखी होना माने क्या होता है, घर का क्या अर्थ है, घरवालों का क्या अर्थ है। तब ये बातें ऐसे स्पष्ट होती हैं जैसे विज्ञान में परिभाषाएं।
पर उतनी स्पष्टता हम अपने आप में आने ही नहीं देते। क्योंकि हमें तो शायरों वाला मज़हब मिला हुआ है, कवियों वाला धर्म।
‘न मैं बाचु गीता, न मैं बाचु कुरान।
तेरी-मेरी प्रीत ही सब धर्मों का ज्ञान।’
शाबाश बेटा, शाबाश!
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