ज़िन्दगी की परीक्षा में पास या फेल?

पैदा हुए थे परीक्षा देने के लिए और ज़िन्दगी काट दी मटरगश्ती में।

जो लोग इस तरह के विद्यार्थी रहे हों वो खूब समझ रहे होंगे मैं क्या कह रहा हूँ। जब साल भर मौज मारी हो और फिर परीक्षाएँ सामने आई हों, तो कैसा लगता है? और भैंसे वाले का सिस्टम ऐसा कि नकल चलती नहीं वहाँ कि तुम कहो आगे-पीछे वाले से पूछ लेंगे।

वहाँ ये सब चलता ही नहीं। वहाँ तो खरी-खरी जाँच होती है बिल्कुल। एक-एक नंबर नाप-तोल कर रखा होता है। कोई चित्रगुप्त नाम का है वो करते हैं ये काम। उसको पूरी मार्किंग स्कीम पता है। इस बात पर इतने नंबर रखने हैं, उस बात के इतने नंबर रखने हैं।

‘ग्रेस’ का वहाँ कोई प्रावधान ही नहीं। वो कहते हैं कि जितनी ‘ग्रेस’ तुम्हें चाहिए थी वो जीते जी उपलब्ध थी। जितनी ‘ग्रेस’ तुम्हें चाहिए थी वो परीक्षा से पहले उपलब्ध थी। तब उसका फायदा क्यों नहीं उठाया? तो वहाँ ग्रेस मिलती है, ग्रेस मार्क्स नहीं मिलते।

हमें अनुकम्पा नहीं चाहिए होती हैं, हमें अनुकम्पा अंक चाहिए होते हैं। वहाँ मिलते नहीं। तो हम थर्राए घूम रहे हैं।

हर व्यक्ति मृत्यु से डरा हुआ है क्योंकि हर आदमी गलत, घटिया और अपूर्ण जीवन जी रहा है।

तुम सही जीवन जी रहे हो या गलत जीवन जी रहे हो ये इसी से पता कर लेना कि अन्दर मृत्यु का खौफ़ कितना है।

जो सही जी रहा है वो किसी भी पल परीक्षा देने के लिए तैयार हो जायेगा। जैसे अच्छे विद्यार्थी होते हैं। आज का पाठ, आज ही पढ़ लिया।

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org