ज़िंदगी के फ़ैसले कैसे लें?
हम सब अक्सर अपने आपको ज़िन्दगी के चौराहों पर खड़े पाते हैं। सब निर्णय लेते हैं, हम कुछ पकड़ते हैं, कुछ छोड़ते हैं। वही क्षण होते हैं जब ज़िन्दगी आबाद होती है या बर्बाद होती है।
गौर से देखा करो जो पकड़ रहे हो किस लिए पकड़ रहे हो? जो छोड़ रहे हो क्यों छोड़ रहे हो? लालच कितना है? अज्ञान कितना है? भीतर की हीनभावना और कमज़ोरी का विचार कितना है?
जो भी निर्णय तुम इसलिए करोगे क्योंकि डरे हुए हो, या नशे में हो, या अपने आप को हीन समझते हो, वो निर्णय तुमको नीचे ही ले जाएँगे और जितना नीचे जाते जाओगे, ऊपर उठना उतना मुश्किल होता जाएगा। क्यों अपनी मुश्किल बढ़ानी?
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