ॐ का वास्तविक अर्थ
ऊँ एक ऐसी ध्वनि है, जो शुरू तो शरीर के कंपन से होती है, लेकिन बोलते — बोलते ही विलीन हो जाती है। हम कहते है ना, ऊँ……म। तो म, रहते — रहते — रहते — रहते क्रमशः शून्य में विलुप्त हो जाता है। तो, ऊँ एक प्रकार की जीवन पध्दति है, ऊँ जीवन शिक्षा है, कि जियो ऐसे कि जीते — जीते शून्य में समा जाओ। शब्द से ही तुम्हारी शुरुआत होती है। पर, शब्द ऐसा रहे जो जल्दी निःशब्द बन जाए — जीवन ऐसा हो।
सभी के जीवन की शुरुआत होती तो शब्द से ही है, शब्द मतलब वो जो शरीर और इन्द्रियों से संबंधित हो; शब्द को कान से ही सुनते हो वो शब्द शरीर से, इन्द्रियों से संबंधित है। शुरुआत सबकी शब्द अर्थात् शरीर-भाव से ही होती है, शरीर ही पैदा होता है। और ऊँ कहता है कि जीवन ऐसा हो कि शुरू शरीर से हो, अंत परमात्मा में हो, अंत शून्यता में हो। जीवन ऐसा हो कि शुरू तो हो शरीर से लेकिन जल्दी ही घुल जाए। तो, ऊँ याद दिलाता है, जब भी ऊँ कहोगे तो अपने से शुरू करोगे, शरीर से शुरू करोगे, कर्तृत्व से शुरु करोगे और मौन में खत्म हो जाओगे।
मांडूक्य उपनिषद् — अ, ऊ और म को लेता है। इसे कहता है कि ये जो तुम्हारा मानसिक जीवन है इसको इंगित करते हैं — अ, ऊ और म। तुम्हारे जीवन में यही तीन स्तिथियाँ होती हैं। जीवन मन है, जीवन समय है — एक समय काल, एक अवधि को ही जीवन कहते है — समय मन है, मन की ही तीनों अवस्थाएँ जीवन है। अ के द्वारा उपनिषद् कह रहा है समझ लो कि जैसे तुम्हारी जाग्रत अवस्था की ओर इशारा है; ऊ के द्वारा उपनिषद् कह रहा है कि समझ लो कि जैसे तुम्हारी स्वप्न अवस्था की ओर इशारा है, वेदांत इनको वैश्वानर और तैजस के नाम से जानता है; और म के द्वारा…