है तुममें विवेकानंद जैसी प्यास?
कहानी कहती है जब विवेकानंद रामकृष्ण से मिले तो पहला प्रश्न किया की भगवान देखा है आपने? विवेकानंद की ऐसी आग थी। भीतर ऐसी त्वरा लगी हुई थी। अभी चाहिए। विवेकानंद पूछ रहे हैं रामकृष्ण से, क्या आपने ईश्वर को देखा है? रामकृष्ण ने भी सहज ही कह दिया कि हाँ देखा है, जैसे किसी ने बिल्ली देखी हो या पेड़ देखा हो।
विवेकानंद कह रहे हैं, मुझे दिखा सकते हो? विवेकानंद ने सोचा, पहले तो इन्होंने शेखी बघार दी, अब शायद इधर-उधर की बात करेंगे। दाएं-बाएँ मुझे जरा भटकाएंगे। रामकृष्ण ने बोला, अभी लो। अब विवेकानंद जरा टाईट हो गए, ये तो आदमी अबूझ मिला। बहुत मिले गुरु और ज्ञानी पर ऐसा तो कोई भी नहीं मिला जो कहता हो कि अभी लो। जानते हो रामकृष्ण ने क्यों कहा कि अभी लो?
जो बोलता है कि अभी चाहिए, उसको गुरु बोलता है, अभी लो। जो कहे मुझे जरा विधि बताइये, लम्बा तरीका बताइये। पहले मेरे पचास संदेह दूर करिए। उनसे गुरु कहता है, बैठो तुम्हारे संदेह दूर करते हैं। तुम्हें जो चाहिए, वही मिलेगा। ये अस्तित्व का नियम है। विवेकानंद को तत्क्षण चाहिए था तो रामकृष्ण ने कहा, अभी लो। कहानी कहती है कि रामकृष्ण ने विवेकानंद की छाती पर अपना पाँव रख दिया। कोई ये भी कहता है कि उनके माथे को स्पर्श कर दिया। पर सब एक बात साझी कहते हैं कि उसी समय विवेकानंद खो गए, मिट गए। कालचक्र रुक गया। मन थम गया। संसार समाप्त हो गया। दर्शन मिल गए। याद रखना, ये इसीलिए हो पाया क्योंकि विवेकानंद को तभी चाहिए था। जिसे अभी चाहिए, उसे अभी मिलेगा। परमात्मा तो गुलाम है तुम्हारा। तुम माँगते नहीं इसलिए मिलता नहीं, तुम माँगो तो मिलेगा। तुम माँगते…