हिम्मत भरा निर्णय लेने की प्रेरणा कैसे मिले?
प्रश्न: आज एक हिम्मत भरा निर्णय लेने के कारण मैं शिविर में आ पाया हूँ। मुझे इसी तरह हमेशा मज़बूत निर्णय लेते रहने की प्रेरणा कैसे मिले?
आचार्य प्रशांत जी: ऐसे ही निर्णय बार-बार लेकर। अगली बार जब ये स्थिति आएगी, तो आप इतने विचलित नहीं होंगे, जितने आप पहली बार हुए।
श्रद्धा को जितना परखेंगे, वो उतनी मज़बूत होती जाएगी।
माया को जितना परखेंगे, वो उतनी कमज़ोर होती जाएगी।
तो परखा करिए, बार-बार प्रयोग, परीक्षण करिए।
जब तक आपने खेल को शुरू ही नहीं होने दिया, तब एक तो दोनों प्रतिद्वंदी, दोनों प्रतिपक्षी, एक बराबर ही हैं न? दो पहलवान खड़े हैं, और तुमने खेल को, प्रयोग को, कुश्ती को, शुरू ही नहीं होने दिया। तो तुम्हारी नज़र में दोनों क्या रहेंगे? बराबर। ये भी शून्य, वो भी शून्य, दोनों बराबर हैं।
ये कुश्ती हो जाने दिया करो।
जितनी बार इसको होने दोगे, उतनी बार पाओगे कि श्रद्धा जीती, माया हारी। अब तुम्हारे लिए मन बना लेना आसान होगा। अब तुम कहोगे, “इसका मतलब भारी तो श्रद्धा ही पड़ती है।”
पर उसके लिए तुमको बार-बार बाज़ी लगानी होगी, खेल खेलना होगा। खेल खेलोगे ही नहीं, निर्णय कर लोगे, यूँही कुछ मन बना लोगे, तो निर्णय गलत होगा तुम्हारा। इसीलिए तो साधना में समय लगता है न, क्योंकि इन सब प्रयोगों में समय लगता है।
मन आसानी से निष्कर्ष पर आता नहीं, उसको बार-बार सबूत चाहिए।