हिम्मत की सुनोगे या डर की?

हिम्मत के पास हमेशा एक तर्क होता है और डर के पास भी हमेशा एक तर्क होता है, जिसका तर्क जीतता है, वो जीत जाता है।

डर से जब कहते हो मुक्ति चाहिए तो यही कह रहे हो कि जैसी जिंदगी चल रही है, वैसी नहीं चाहिए।

डर क्या है, तुम्हारी जीती-जागती हकीकत या कोई किताबी सिद्धांत?
अगर जीवन डर से इतना लिप्त है तो जीवन बढ़िया कैसे है?

डर है तो साँस-साँस में पर चौबीस घंटे उसका अनुभव नहीं होता। अनुभव वो उतना ही ज़्यादा होता है जितनी ज़्यादा आपकी संवेदनशीलता है। डर तो है चौबीस घंटे पर हम इतनी गहराई से अपने मन के संपर्क में ही नहीं हैं कि हमें पता हो कि हम जिस अवस्था में जी रहे हैं उसका और कोई नाम उचित ही नहीं है। उसका तो निरंतर एक ही नाम होना चाहिए, डर।

डर अहंकार का यथार्थ है पर अहंकार को बड़ा अपमान देता है।

छल, भ्रम और माया जहाँ पकड़ में आ गए, वहाँ से हट गए, अब वो तुम्हारा बहुत नुकसान नहीं कर सकते। वो सबसे ज़्यादा घातक वहाँ पर है, जहाँ वो दिखाई नहीं दे रहे।

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org

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