हिम्मत की सुनोगे या डर की?
हिम्मत के पास हमेशा एक तर्क होता है और डर के पास भी हमेशा एक तर्क होता है, जिसका तर्क जीतता है, वो जीत जाता है।
डर से जब कहते हो मुक्ति चाहिए तो यही कह रहे हो कि जैसी जिंदगी चल रही है, वैसी नहीं चाहिए।
डर क्या है, तुम्हारी जीती-जागती हकीकत या कोई किताबी सिद्धांत?
अगर जीवन डर से इतना लिप्त है तो जीवन बढ़िया कैसे है?