हिन्दू खतरे में हैं?

प्रश्‍नकर्ता: नमस्ते आचार्य जी, डिस्मेंटलिंग ग्लोबल हिंदुत्व (वैश्विक हिंदुत्व की समाप्ति) के नाम से अमेरिका में एक कॉन्फ्रेंस हो रही है। बहुत सारे लोगों का ऐसा मानना है कि यह कॉन्फ्रेंस हिन्‍दुओं को बदनाम करने की एक साज़िश है।

इसी विषय में, आपके एनआरआई (प्रवासी भारतीय) श्रोता हैं एक, उनकी ओर से हमें एक ई-मेल आई है। ई-मेल में वो अपील कर रहे हैं कि आप इस विषय पर कुछ बोलें और उनका ऐसा मानना है कि इस कॉन्फ्रेंस में जो भी तर्क दिए जाएँगे वो सत्‍य संगत नहीं होंगे, ग़लत होंगे और उनके शब्‍द हैं — ‘‘आचार्य जी, यू हैव ए लार्ज एनआरआई ऑडियन्‍स दैट रेग्‍यूलरली वाचेस यूअर वीडियोस एण्‍ड एक्‍सट्रैक्‍स विसडम फ्रॉम दैम। वी नीड यूअर लीडरशीप इन एड्रेसिंग द फाल्‍स ट्रुथस्, दैट वील बी स्‍पोकन एट दिस कॉन्फ्रेंस। प्‍लीज़ स्‍पीक।’’ (प्रवासी भारतीयों में एक बहुत बड़ा समूह आपके वीडियो का नियमित श्रोता है और वो चाहते हैं कि इस समारोह में जो ग़लत तर्क दिया जाएगा उसको काटने के लिए आप हमारी ओर से सच का प्रतिनिधित्व करें। कृपया कुछ कहें।)

जब उनका ई-मेल पढ़ा और इस कॉन्फ्रेंस के बारे में मैंने भी थोड़ी रिसर्च (शोध) करी तो यह सवाल मेरे मन में भी उठ रहा है कि क्या सचमुच ये हिंदुओं को बदनाम करने की साज़िश है, अगर है तो किस तरीके से?

आचार्य प्रशांत: देखो, साज़िश अगर है भी — जो लोग इस कॉन्फ्रेंस में बोलने वाले हैं या जिन्होंने इस कॉन्फ्रेंस को ऑर्गनाईज़ (आयोजित) करा है, मुझे नहीं मालूम कि उनके मन में क्या हो रहा है। मैं अंतरयामी नहीं हूँ। पर अगर ये साज़िश है भी, तो आप किसी को साज़िश करने से रोक तो सकते नहीं। दुनिया में इतने लोग हैं, उनके अपने मन हैं, दिमाग हैं और उन सब के पास बोलने के लिए ज़बान है, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है। आप किसी की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता तो छीन नहीं सकते। तो जिन्‍हें जो करना है वो तो करते ही रहेंगे। आप उनके लिए अगर एक रास्ता रोकोगे वो दूसरा रास्ता पकड़ लेंगे। कहीं-न-कहीं तो उनको बोलने के लिए जगह मिल ही जाएगी और ये उचित भी नहीं है कि किसी को उसके मन की बात बोलने से रोक ही दिया जाए। और जब मैं ये सब कह रहा हूँ, मैं फिर कह रहा हूँ कि मैंने वहाँ बोलने वालों को अभी सुना नहीं, मैं जानता नहीं वहाँ क्या बोला जाने वाला है। मुझे नहीं मालूम कि साज़िश वगैरह है या नहीं है और मुझे उस बात से कोई बहुत मतलब भी नहीं है कि साज़िश है या नहीं है।

मुझे मतलब देखो दूसरी बात से है। वो कॉन्फ्रेंस कर रहे हैं, तो जो लोग अपने-आपको हिन्‍दू धर्म का हितैशी बोलते हैं उनको बड़ी तकलीफ़ वगैरह हो रही है। भई आपको तकलीफ़ हो रही है तो आपने आज तक कॉन्फ्रेंसेस् क्यों नहीं करी? सिर्फ़ प्रतिक्रिया में रोना-चिल्लाना आपको क्या लाभ दे देगा? वो कर रहे हैं कॉन्फ्रेंस, करने दीजिए। उन्हें वैसे भी रोका नहीं जा सकता। आपकी कॉन्फ्रेंसेस् कहाँ हैं? और जहाँ तक मुझे पता है कि वहाँ ये हो रही है कॉन्फ्रेंस तो उसकी प्रतिक्रिया में उन्‍हीं तारीखों पर यहाँ पर भी कुछ…

आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org

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