हित-अहित की पहचान

ख़ुशी बड़ा फिसलन भरा शब्द है।

इससे बचकर रहना होता है।

इसका मतलब ये नहीं कि दुःख की तरफ जाना है पर ख़ुशी से बचकर रहना।

चाहे वो तुम्हारी ख़ुशी हो या तुम्हारे घरवालों की। तुम्हारा हित तुम्हारी ख़ुशी से ज़्यादा महत्वपूर्ण है।

इसका भेद हमें स्पष्ट होना चाहिए कि हमारा हित क्या है और हमारी प्रसन्नता क्या है। प्रसन्नता की बात सब करते हैं पर इसकी बात कोई करता ही नहीं कि हित कहाँ निहित है।

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org