हिंदी से दूर रखकर आप बच्चे की जड़ें काट रहे हो

संस्कृति छोटा मुद्दा है अध्यात्म के सामने पर जब मैं बच्चों को देखता हूँ कि छठवीं, आठवीं में आ गए हैं, और हिंदी बोलना नहीं आया, राम को रामा और कृष्ण को कृष्णा बता रहे हैं, तो मैं ये भी समझ जाता हूँ कि ये बच्चा अब जीवन में कभी गीता को सम्मान नहीं देने वाला।

कुछ है सम्बन्ध हिंदी और गीता के बीच।

आप अपने बच्चे को अगर ऎसी परवरिश दे रहे हैं कि वो हिंदी से दूर रहे, तो समझ लीजिएगा आपने अपने बच्चे को गीता से भी दूर कर दिया, और माँ-बाप की छाती फूल जाती है ये बताने में कि मेरे बच्चे की हिंदी ज़रा कमज़ोर है। क्या गौरव की बात है! बताते हैं कि वो अंग्रेज़ी ही ज़्यादा समझता है।

बात अगर सिर्फ हिन्दी की उपेक्षा या अवहेलना करने की होती, तो मैं किसी तरह बर्दाश्त भी कर लेता, पर यहाँ बात, सिर्फ हिंदी की भी नहीं है। जब आप अपने बच्चे को अंग्रेजी-परस्त बनाते हैं, तो आप उसके भीतर बिल्कुल अलग तरह के मूल्य स्थापित कर देते हैं और वो मूल्य आध्यात्मिक नहीं हैं, इतना मैं आपको बता देता हूँ क्योंकि आप बच्चे को अंग्रेज़ी-परस्त इसलिए नहीं बना रहे कि अंग्रेजी बड़ी सुन्दर भाषा है। बच्चे को आप अंग्रेज़ी-परस्त इसलिए बनाते हैं, क्योंकि अंग्रेज़ी भाषा में आपको पैसा और भौतिक सुख दिखाई देता है।

यहाँ तो बच्चों को दूध के साथ अंग्रेज़ी पिलाई जा रही है, इसलिए नहीं कि अंग्रेज़ी बड़ी प्यारी भाषा है, बल्कि इसलिए क्योंकि लालच है कि अंग्रेज़ी सीखेगा, तो रुपया ज़्यादा बनाएगा। शायद भौतिक तरक्की ज़्यादा करेगा। इतना तो आप समझते ही हैं कि मुझे अंग्रेज़ी से कोई समस्या नहीं है, खूब पढ़ता हूँ अंग्रेज़ी, खूब बोलता हूँ, समृद्ध भाषा है, लेकिन आमतौर पर आप लोग जिस कारण से अंग्रेज़ी की ओर जाते हैं, वो कारण बहुत गलत हैं।

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org