हिंदी को नहीं अपनी हस्ती को अपमानित कर रहे हो

हिंदी की क्या औकात? अपमानित भाषा! तो भौतिक कारण समझ में आ रहा है? नल की टोटी ठीक करने की शिक्षा भी अंग्रेजी में हीं मिलेगी। डॉक्टर तो डॉक्टर तुम कंपाउंडर भी अंग्रेजी में ही बन सकते हो और यदि बहुत हठ दिखाओगे तो ‘भाषायी-आतंकी’ कहलाओगे। “देखो इनको! ये भाषा से ऊपर ही नहीं उठ पा रहे हैं, हिंदी पकड़ कर बैठे हुए हैं; इनके दिमाग पर पुरानी चीज़ों ने कब्ज़ा कर रखा है, पुराने संस्कार, पुरानी भाषाएँ, भाषा से ऊपर उठो।”

अगर दस रुपया भी कमाना है तो हिंदी को छोड़ो, नहीं तो हिंदी बोल कर के फिर तुम एक ही धंधा है जो कर सकते हो कबाड़ी… वो हिंदी में बोलता है, वहाँ हिंदी में भी काम चल जाता है या “चाय गरम चाय” वहाँ अभी हॉट टी, हॉट टी नहीं है, वहाँ अभी बचा हुआ है। हालांकि मुझे लग रहा है कि अगर प्लेन वगैरह में चाय बिकेगी और वहाँ ‘चाय गरम’ बोल दिया तो कोई न खरीदे। वो जो देवी जी आती है वो बोलती हीं नहीं चाय, “टी ऑर कॉफी?” बोल दो चाय तो वो उनको समझ में ही न आय कि ये कौन सी चीज़ बता दी? चाय। आ रही है बात समझ में? ‘आई मीन आर यू गेटिंग इट’?

(सभी श्रोता हँसते हुए)

तरक्की पसंद मुल्क है भाई ये, क्या कर सकते हैं? क्या करोगे ऐसे देश का जो अपने ही ऊपर ये बंधन, ये बाध्यता लगा ले, अपनी ही व्यवस्था ऐसी बना ले कि सरकारी नौकरी पानी हो, प्राइवेट नौकरी पानी हो, अंग्रेजी आनी चाहिए। अब सही-सही बताना उस प्राइवेट नौकरी में अंग्रेजी का काम क्या है बताओ?

मजेदार था! बीच में कॉल-सेंटर का बड़ा ज़ोर चला था, करीब दस साल तक। तो एक मिला यूँ ही रोता…

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org