हार मंज़ूर है, हौसले का टूटना नहीं
4 min readJun 26, 2021
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प्रश्नकर्ता: आचार्य जी, जैसा कि आपने बताया कि विचार करो और विरोध करो। जो कुछ भी चेतना के तल पर नीचा है उसका विरोध करो लेकिन विरोध करने पर भी, जैसे सौ बार विरोध करना है तो उसमें जब नब्बे बार हार मिलने लगती है तो फिर इक्यानवे बार कोशिश करने का मन नहीं होता है तो इस स्थिति में क्या करना चाहिए?
आचार्य प्रशांत: नहीं, विरोध करना जीत है! हार कैसे मिल गई?