हारोगे तुम बार-बार, बस कोई हार आखिरी न हो

अपने प्रति सहानुभूति रखें।
अपने विरुद्ध मत खड़े हों।

हम हारे हुए ही हैं और हम हारेंगे बार-बार।
बस इतना कर लीजिए कि कोई भी हार आखिरी ना हो।

एक सुनने वाला कान होगा,
जो कहेगा कि मैंने जो कहा,
वो बहुत हारा हुआ वक्तव्य है
और मैं बात हार की ही कर रहा हूँ।

मैं कह रहा हूँ कि हारे हुए हम हैं और हारेंगे हम बार-बार।

बस इतना तय कर लीजिए कि कोई भी हार,
आखिरी नहीं होगी।
यही आपकी बड़ी जीत है।

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org