हर वर्ष निर्वासित हुए राम, दिवाली पर

आचार्य प्रशांत: जैसे हमारे त्यौहार होते हैं, जिन तरीकों से हम उन्हें मनाते हैं, उनमें सब कुछ कुत्सित, गर्हित और नारकीय होता है। वो हमारी चेतना को और ज़्यादा तामसिक बना देते हैं। हमारे सबसे भद्दे चेहरे, हमारे त्योहारों में निकल कर आते हैं। बड़ा दुर्भाग्य है हमारा कि भगवान के नाम पर हम जो भी करते हैं, उसमें भगवत्ता ज़रा भी नहीं होती।

अब अगर आपके चारों ओर वही सब माहौल बन रहा होगा, और बनता ही है, समाज, कुटुम्ब, परिवार सब मिलकर के वो माहौल रचते हैं, तो आपको बड़ी दिक्कत हो रही होगी मेरी बातें सुनने में। लग गईं हैं न झालरें, हो रहा है न ख़ुशी का नंगा नाच? हर कोई दिखाना चाह रहा है न आपको कि कितना खुश है वो कि आज राम घर लौटे थे, “माय गॉड! राम! राम!”

(सभाजन हँसते हैं)

(व्यंग्य करते हुए) पूरा हिंदुस्तान पगला जाता है, इतनी ख़ुशी फैलती है कि राम घर लौटे थे। देखिए न साल भर सबका जीवन कितना राममय रहता है, तो दिवाली पर तो हर्ष स्वाभाविक है कि राम घर लौटे थे; और जब तक वनवास में थे तब तक लोग उपवास कर रहे थे। तो अब जब वो घर लौटे हैं तो मिठाइयों के दौर चल रहे हैं। क्यों, नहीं चल रहे क्या?

अगर राम के घर लौटने पर तुम इतने पकवान पका रहे हो तो जब राम वनवास कर रहे थे तो तुम उपवास भी कर रहे होओगे? पर नहीं, एक बहता हुआ झूठ है जो पीढ़ियों से बहता हुआ चला आ रहा है और तुम्हें उसे बहाए रखना है। बहाओ!

इस पूरे तमाशे का राम से कुछ लेना-देना है? राम का लेना-देना जानती हो किससे है? राम का लेना-देना हमसे है, हमसे। हमारे हाथ…

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org