हर वर्ष निर्वासित हुए राम, दिवाली पर
आचार्य प्रशांत: जैसे हमारे त्यौहार होते हैं, जिन तरीकों से हम उन्हें मनाते हैं, उनमें सब कुछ कुत्सित, गर्हित और नारकीय होता है। वो हमारी चेतना को और ज़्यादा तामसिक बना देते हैं। हमारे सबसे भद्दे चेहरे, हमारे त्योहारों में निकल कर आते हैं। बड़ा दुर्भाग्य है हमारा कि भगवान के नाम पर हम जो भी करते हैं, उसमें भगवत्ता ज़रा भी नहीं होती।