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‘हर पल को पूरा जीने’ का भोगवादी आदर्श

जीवन शोकमय है और शोक जिसको काटना हो — वो दमन और शमन दोनों में पारंगत हो जाए।

मन को ऐसी सामग्री देनी है जिससे उसका ताप ठंडा पड़ जाए, ये शमन कहलाता है।

मन का संबंध होता है इंद्रियों से और यह इंद्रियाँ लगी ही रहती हैं अपने भोग विषयों की ओर जाने को। बात यह है कि इंद्रियाँ अगर पहुंच गई अपने भोग विषय की ओर, तो भोगने की लालसा मन की और बढ़ जानी है। तो बलात फिर इंद्रियों को रोकना पड़ता है। रोकने का जो साधन है उसको दमन के नाम से जाना जाता है।

देख लो! कौन सा विचार मन ने पकड़ रखा है, जिसके कारण मन जल रहा है।

देख लो कौन सी धारणा, कौन सी मान्यता या कौन सी आशा मन ने पकड़ रखी है जिसके कारण मन जल रहा है। छोड़ दो उसको, ये हुआ दमन।

दमन के भी दो तरीके होते हैं — एक सकारात्मक और दूसरा नकारात्मक।

सकारात्मक तरीका यह है दमन का कि मन बहुत आतुर ही हो रहा है किसी से बात करने को। तो किसी ऐसे के पास चले जाओ, जिससे बात करके शांति मिलती है। नकारात्मक तरीका क्या है दमन का? कदम गलत दिशा में बढ़ रहे हैं, उन्हें उधर जाने मत दो। ये दोनों ही चाहिए होते हैं।

पूरा वीडियो यहाँ देखें।

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant
आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

Written by आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org

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