हर परिस्थिति में सैम कैसे रहें?
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एवं देहद्वयादन्य आत्मा पुरुष ईश्वरः। सर्वात्मा सर्वरूपश्चसर्वातीतोऽहमव्ययः।।
इस प्रकार आत्मा पुरुष या ईश्वर स्थूल एवं सूक्ष्म दोनों प्रकार के शरीरों से भिन्न है। अतः मैं सर्वात्मा, सर्वरूप, अविनाशी और सबसे परे हूँ।
~ अपरोक्षानुभूति (श्लोक ४०)
आचार्य प्रशांत: (प्रश्न पढ़ते हुए) शंकराचार्य के श्लोक को उद्धृत किया है, “आत्मा स्थूल एवं सूक्ष्म दोनों प्रकार के शरीरों से भिन्न है। मैं सर्वात्मा, सर्वरूप, अविनाशी और सबसे परे हूँ।” कह रहे हैं, “समझाएँ।”
जो सर्वरूप है, वही सब रूपों से परे हो सकता है। बात ज़ाहिर है! उसने किसी एक रूप से संबंध बैठा लिया होता तो सर्वरूप कैसे होता? जिसका किसी रूप से कोई लेना-देना नहीं, उसके अनंत रूप हैं। जिसका एक-दो रूपों से लेना-देना है, उसके एक-ही-दो रूप हैं। तुम अपने एक-दो रूपों को इतनी गंभीरता से ले लेते हो कि बाकी सारी संभावनाएँ ख़त्म कर देते हो।
“सर्वात्मा, सर्वरूप, अविनाशी और सबसे परे हूँ।” सर्वात्मा क्यों? क्योंकि आत्मा सदा एक है, भेद सारे व्यक्तित्व के तल पर हैं। जहाँ व्यक्तित्व ही ख़त्म, वहाँ शून्यता है, खाली आकाश है। शून्य और शून्य में, आकाश और आकाश में अंतर नहीं होता; व्यक्ति और व्यक्ति में अंतर होता है। आत्मा व्यक्ति का विलोप है। विलुप्ति और विलुप्ति में अंतर थोड़े ही होता है! यहाँ कुछ गंदा पड़ा था, वहाँ कुछ गंदा पड़ा था, ये दोनों जगहें अलग-अलग थीं। यहाँ भी साफ़ हो गया, वहाँ भी साफ़ हो गया, अब बताओ क्या भेद है? बोलो! कुछ नहीं न?
आत्मा और आत्मा तो छोड़ दो, जब तुम सो जाते हो तब भी सारे भेद मिट जाते हैं। स्त्री सो रही है और पुरुष सो रहा है, बताओ दोनों की आंतरिक अवस्था में कोई भेद बचा? ज्ञानी सो रहा है और मूढ़ सो रहा है, बताओ दोनों में कोई भेद बचा? भेद सारे कहाँ हैं? भेद सारे मिश्रित चेतना में हैं, अशुद्ध चेतना में हैं। भेद वृत्तियों और विचारों में हैं। वृत्तियाँ, विचार जहाँ थमे, वहाँ सारे भेद भी मिटे। जब सोने-भर से अभेद की तुमको झलक मिल जाती है, तो सोचो समाधि में क्या होगा! सोच ही नहीं पाओगे; वो सोचने से तो अच्छा है तुम सो ही जाओ, ज़्यादा झलक मिल जाएगी। और याद रखना, जो आनंद सोने में है, वो कहीं और नहीं। इसीलिए अमीर-से-अमीर आदमी की अगर नींद छीन लो, तो वो कहता है, “मेरी सारी दौलत ले लो, नींद लौटा दो!”
ये जो नींद की कीमत है, ये वास्तव में समाधि की, अभेद की कीमत है। नींद तुमको सुकून देती ही इसीलिए है क्योंकि नींद में कुछ भी खंडित, विभाजित, भेदयुक्त नहीं होता, नींद एकरस है। नींद में कुछ है ही नहीं, तो किसी की परवाह नहीं करनी। नींद में कुछ है ही नहीं, तो कोई ज़िम्मेदारी नहीं। तुम अपनी सारी ज़िंदगी, सारी…