हम हँसें जग रोये
कबीरा जब पैदा हुए तो जग हँसा हम रोये
ऐसी करनी कर चलो कि हम हँसे जग रोये
सात जन्म के सात फेर हैं
साँप सीढ़ी है भाई
जम का दंड मुंड पे लागे
धरी रहे चतुराई
कबीरा जब पैदा हुए तो जग हँसा हम रोये
ऐसी करनी कर चलो कि हम हँसे जग रोये
पाँच तत्व के पाँच पंच हैं
पाँच व्याद जग डोले
पंचम सुर में अनहद गूंजे
पंचम सुर में अनहद गूंजे
दसो द्वार को खोले
कबीरा जब पैदा हुए तो जग हँसा हम रोये
ऐसी करनी कर चलो कि हम हँसे हग रोये
कबीर
वक्ता: कबीरा जब पैदा हुए जग हँसा हम रोये, ऐसी करनी कर चलो हम हँसे जग रोये|
मान्यता हमारी यही रहती है कि एक जगत है जिसका कोई वस्तुगत अस्तित्व है, ऑब्जेक्टिव एग्जि़स्टेंस और हम उस जगत में पैदा होते हैं, कि बच्चा उस जगत में आता है| समझिये इस बात को कि बच्चा जगत में नहीं पैदा होता, जगत खुद पैदा होता है| बच्चे का पैदा होना जगत का पैदा होना है| निश्चित रूप से जब बच्चे के साथ जगत अस्तित्व में आ रहा है तो हँसेगा क्योंकि वास्तव में पैदाइश उसी की हो रही है? जगत की हो रही है| जिसे हम बच्चा कहते हैं इस प्रक्रिया में उसके लिए कुछ नहीं रखा है, वो कुछ पा नहीं रहा है पैदा हो कर के, उसका तो न होना भी भला था|