हम पैदा क्यों होते हैं? क्या जीवन का कोई लक्ष्य है?

प्रश्नकर्ता: एक तरफ़ तो आप कहते हैं कि, “तुम इसलिए पैदा हुए हो कि तुमको मुक्ति मिले और प्रकृति भी चाहती है कि तुम मुक्त हो जाओ”, लेकिन दूसरी तरफ़ आप कहते हैं कि प्रकृति तुमको बाँधकर रखना चाहती है। तो इन दोनों बातों में तो विरोधाभास है।

आचार्य प्रशांत: बढ़िया सवाल। देखो, जब मैं कहता हूँ प्रकृति तुमको बाँधकर रखना चाहती है — अच्छा हुआ तुमने पूछ लिया — तो उससे बेहतर तरीक़ा कहने का ये है कि तुम प्रकृति से बँधे-बँधे रहना चाहते हो।

एक उदाहरण देता हूँ। उसका उपयोग मैं पहले भी कर चुका हूँ, पर सुन्दर रूपक है इसलिए उसका उपयोग मैं दोबारा कर लूँगा।

प्रकृति माँ है, हम कहते ही हैं माँ है। प्रकृति को हम माँ कहते हैं न कि, “प्रकृति माँ है, हम सब उससे पैदा हुए हैं।” तो प्रकृति माँ है, तुम बच्चे हो उसके। प्रकृति ने तुम्हें जन्म दिया है, प्रकृति ने तुम्हें ये देह दी है, इस हद तक तुम प्रकृति से जुड़े हुए हो।

और आरम्भ में प्रकृति से तुम्हारा जुड़ाव लाज़मी है, होना ही था, जैसे हर छोटे बच्चे का अपनी माँ से जुड़ाव होता है शुरुआत में। लेकिन प्रकृति एक अच्छी माँ है। उसने तुमको वो सारे औज़ार दिए हैं, क्षमताएँ दी हैं, उपकरण दिए हैं जिनके माध्यम से तुम एक स्वस्थ युवक बन सकते हो, बड़े हो सकते हो। अब ये तुम्हारे ऊपर है कि तुम प्रकृति माँ द्वारा दी गई क्षमताओं का इस्तेमाल करते हो या नहीं करते हो।

अक्सर लोग नहीं करते हैं। क्यों नहीं करते हैं? वजह है। प्रकृति के द्वारा दी गई क्षमताओं का इस्तेमाल अगर तुम करोगे तो तुम्हें प्रकृति से दूर जाना पड़ेगा। और प्रकृति की गोद से दूर जाना हमें डरा देता है क्योंकि हम उसी गोद में पैदा हुए हैं, वहाँ हमें सुरक्षा की अनुभूति होती है।…

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org