हम पशुओं को क्यों मारते हैं?

इंसान का अहंकार है कि जैसा मैं हूँ, वही ठीक है और सबको मेरे जैसा होना पड़ेगा। आदमी के अंदर अहंकार बहुत गहरा है और जो कोई हमारे जैसा नहीं है, उसको हम कैसा समझते हैं — तुच्छ! उसको हम कह देते हैं कि ये तो नालायक है। अब आदिवासी कम कपड़े पहनता है तो हम कह देते हैं कि ये असभ्य है और जानवर तो बेचारा एकदम ही कपड़े नहीं पहनता, तो उसको हम क्या बोल देते हैं? कि ये तो बिलकुल ही जानवर है।

हम पूरी प्रकृति का सिर्फ शोषण करते हैं और वो हम सिर्फ इसी अहंकार में करते हैं कि हम पूरी प्रकृति से ऊपर हैं, श्रेष्ठ हैं। जानवरों को खाने के पीछे जो अक्सर दूसरा तर्क दिया जाता है वो स्वाद का और पोषण का होता है; कि प्रोटीन मिलता है या स्वाद बहुत अच्छा आता है। ये भी तथ्य नहीं है, ये बात फैक्चुअली ठीक नहीं है| दुनिया के कितने ही बड़े-बड़े एथलीट हैं जो माँस क्या, दूध भी नहीं पीते क्योंकि वो भी जानवरों का शोषण कर के आता है। वो कहते हैं कि हम दूध भी नहीं पियेंगे। गाय का दूध मेरे लिए नहीं है, गाय के बछड़े के लिए है। बछड़े के साथ अन्याय है अगर मैं दूध पी रहा हूँ। तो अगर कोई कहें कि बिना जानवरों को खाये शरीर का पोषण कैसे होगा तो वो पागलपन की बात कर रहा है। तो जो पोषण वाला तर्क है, वो बिलकुल बेबुनियादी है, उसका कोई आधार नहीं। तुम्हें सब्ज़ियों, फलों से पूरा पोषण मिल सकता है, तुम्हें माँस की कोई ज़रुरत है ही नहीं।

जो तीसरी बात होती है, वही प्रमुख है — स्वाद। आदमी की जो ज़बान है, वो चटोरी होती है, तुम्हें स्वाद लग गया है और असली बात यही है कि तुम्हें स्वाद लग गया है, और तुम्हारे भीतर संवेदना है नहीं, तो इस कारण से…

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org