हम पशुओं को क्यों मारते हैं?

आदमी अपनेआप को बाकी प्रकृति से श्रेष्ठ मानकर अपना ही नुक़सान कर रहा है। आज देख रहे हो न ये ग्लोबल वार्मिंग? ये इसी का नतीजा है, क्योंकि तुमने प्रकृति को बहुत छेड़ा। तुमने ये माना कि “मैं इसका कितना भी दोहन कर सकता हूँ”। और अब दुनिया के कम-से-कम बीस शहर हैं, जिनमें से तीन भारतीय शहर हैं, जो नष्ट होने की कगार पर खड़े हैं। जितने भी तटीय शहर हैं न, जो समुद्र के किनारे पर होते हैं, उन सब में बाढ़ का ज़बरदस्त खतरा है। समुद्र का तल उठ रहा है। इन शहरों के डूबने का खतरा है। तुम्हारी मुम्बई बड़े खतरे में है। ग्लोबल वार्मिंग से बर्फ़ पिघलेगी, और जब बर्फ़ पिघलेगी तो समुद्र का तल उठेगा। ये आदमी ने प्रकृति के साथ जो नाजायज़, मूर्खतापूर्ण, अहंकारपूर्ण हरकतें करी हैं, उन्हीं का नतीजा है।

जानवरों की, पक्षियों की, छोटे-छोटे कीड़ों की कितनी ही प्रजातियाँ विलुप्त हो गईं। अब वो कभी लौटकर नहीं आएँगी। और हर प्रजाति जो विलुप्त होती है, उसके साथ तुम्हारा जीवन भी थोड़ा-थोड़ा नष्ट हो जाता है।

मैं कहीं पढ़ रहा था कि ये जो मधुमक्खी होती है, वो अगर नष्ट हो जाए पूरी तरह, तो कुछ ही वर्षों के भीतर आदमी को भी नष्ट होना पड़ेगा। क्योंकि जो पूरी इकोलॉजी है न, वो पूरा तंत्र है, एक जाल है। जैसे जाल को तुम एक तरफ़ से काटना शुरू करो, तो जाल के बाकी जोड़ों पर इतना ज़ोर पड़ेगा कि वो भी टूट जायेंगे। एक खिंचा हुआ जाल हो, उसको तुम एक तरफ़ से काट दो तो दूसरी तरफ़ से भी उसके फटने की आशंका हो जाएगी। तो जो पूरा इकोलॉजिकल चक्र है, संतुलन है, वो टूट रहा है। और ये आदमी की इसी हरकत का नतीजा है कि “मैं तो सर्वोत्तम हूँ, सर्वोच्च हूँ!”

तुम्हारा अहंकार है जिसके कारण तुम जानवरों को कुछ समझते नहीं। तुम सोचते हो कि कुछ भी करो इनके साथ। तुम्हारे मन में जानवरों के लिए कोई प्रेम नहीं होता।

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org