हम‌ ‌धोखे‌ ‌से‌ ‌नहीं‌ ‌बहकते,‌ ‌मज़ा‌ ‌लेते‌ ‌हैं‌ ‌बहकने‌ ‌में‌

प्रश्नकर्ता: जब मेरे दिमाग में कोई भी विचार आता है, थॉट आता है, मुझे खुद भी नहीं पता होता कि मैं क्यों सोच रहा हूँ यह सब। जब भी मैं कोई काम करने जा रहा होता हूँ या पढ़ रहा होता हूँ, वह मेरे को फ़ोकस नहीं करने देता, कंसंट्रेशन नहीं हो पाता। मैं उन सारे थॉट्स को रोक तो नहीं सकता तो मैं ऐसा क्या करूँ कि वह सारे थॉट्स कंस्ट्रक्टिववे में मेरे साथ रहे ताकि मेरा कंसंट्रेशन बना रहे और मेरा मन विचलित न हो?

आचार्य: तुम सड़क पर कहीं की ओर चले जा रहे हो और रास्ते में तुमको दिखाई दे रहे हैं- पेड़, घर, वाहन, लोग, दुकानें, पशु-पक्षी। किसी भी रास्ते पर चलो तो यह सब दिखाई देते हैं न? अब तुम पूछ रहे हो मैं कोई काम करता हूँ, मैं किसी दिशा चलता हूँ तो यह सब क्यों दिखाई देते हैं? वो हैं इसलिए दिखाई देते हैं, उनका काम है होना तुम उन्हें रोक नहीं सकते लेकिन जिन्हें मंज़िल पर पहुँचना होता है उन्हें रास्ते में अगर कोई पेड़-पहाड़ दिखाई दे रहा है तो क्या वो उसको देखने लग जाते हैं? गाड़ी जब चलाते हो तो रास्ते में जो भी दृश्य होते हैं वो क्या विलुप्त हो जाते हैं? बोलो मिट जाते हैं? मिट नहीं जाते तो तुम आकर तब क्यों नहीं शिकायत करते कि हम गाड़ी चला रहे हैं, मंज़िल की ओर जा रहे हैं और रास्ते में बहुत सारे दृश्य आ जाते हैं? आ जाते हैं तो आ जाते हैं! तुम्हारी नज़र किस पर रहती है? उन दृश्यों पर या मंज़िल पर?

तुम बखूबी पचा गए कि तुम्हारी नज़र मंज़िल पर नहीं है। उस बात का तुमने ज़रा भी जिक्र ही नहीं किया। तुम कह रहे हो “मैं गाड़ी चलाता हूँ आचार्य जी…

--

--

आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org