हम धर्मग्रंथो से दूर क्यों भाग रहे हैं?
धर्म की आत्मा समझ लो धर्मग्रंथ होता है। ख़ासतौर पर तुम हिंदुओं में, सनातन धर्म
के मानने वालों में आजकल ये प्रचलन, ये वृत्ति बहुत देखोगे “कि नहीं साहब! मैं कोई धार्मिक किताब वगैराह नहीं पढ़ता।”
और बहुत लोग तो यह बात बड़े गौरव के साथ बताते हैं। जैसे ये उनकी कोई खूबी हो कि
उन्होंने कभी कोई किताब नहीं पढ़ी।
ये जानबूझकर की हुई साजिश है!
ग्रंथ पुराने नहीं पड़ गए, ग्रंथ अनुपयोगी नहीं हो गए, ग्रंथ आउटडेटेड नहीं हो गए। हम जैसे जी रहे हैं, हम वैसा जी नहीं पाएँगे अगर हमने उन ग्रंथों को पढ़ लिया।
निश्चितरूप से उनको पढ़ोगे तो तुम्हारे जीवन में सुधार आएगा, केंद्रीय सुधार आएगा लेकिन वो सुधार तुम्हें चाहिए नहीं क्योंकि वो सुधार आने का मतलब होगा तुम्हारे भोग में कमी आएगी और तुम भोग के दीवाने हो चुके हो।
हमें कहीं न कहीं भीतर से पता है कि हम जैसा जी रहे हैं वो गलत है, प्रमाण ये है कि हम धर्मग्रंथों से दूर भागते हैं।
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