हम तनाव, डर, परेशानी में क्यों रहते हैं?

प्रश्न: आचार्य जी, ऐसा क्यों होता है कि लोग बहुत परेशान, दुःखी और तनाव से भरे हुए रहते हैं?

आचार्य प्रशांत: तनाव कहाँ से आता है?

एक रस्सी है वो अपना पड़ी हुई है, उसमें तनाव कब आएगा? जब उसके दो सिरों को दो ओर से विपरीत दिशाओं में खींचा जाएगा, आएगा कि नहीं आएगा?

आएगा! और अगर रस्सी को पाँच-दस लोग, पाँच-दस अलग-अलग दिशाओं में खींच रहा हो तो? मान लो, लंबी रस्सी है। उसे पाँच-दस लोग, पाँच-दस अलग-अलग दिशाओं में खींच रहे हों तो जम के तनाव आएगा। रस्सी कहीं जा नहीं पाएगी, कुछ कर नहीं पाएगी, किसी दिशा में बढ़ेगी नहीं, कभी इधर खिंचेगी, कभी उधर खिंचेगी, लेकिन तनाव भरपूर रहेगा, रहेगा कि नहीं रहेगा?

ये जो रस्सी है ना ये हमारा मन है। हमारे मन को दस दिशाओं से, दस ताकतों द्वारा खींचा जा रहा है लगातार, लगातार अब जैसे रस्सी बेजान होती है, मुर्दा। वो कह नहीं पाती है कि छोड़ो मुझे, खींचना बन्द करो।

मेरा जीवन है, मेरी अपनी भी कोई स्वेच्छा है, अपनी दिशा, अपनी गति मैं खुद निर्धारित करूँगी।

रस्सी ये कभी कह पाती है, कह पाती है क्या? नहीं कह पाती ना, चेतना नहीं है उसमें। चेतना माने जानना, बोध युक्त होना है नहीं उसमें। बेजान है खिंची जाती है और अंततः क्या होगा अगर खिंचती ही गयी, खिंचते ही गये लोग उसे इधर-उधर तो क्या होगा? खिंचते-खिंचते अंततः टूट जाएगी।

हमारा मन का भी यही होता है। उसके हिस्से हो जाते हैं, टूट जाता है, फट जाता है, उसके फाड़ हो जाते हैं। उसी को कहते हैं खंडित मन बहुत सारे हिस्से हो गए और हर हिस्से पर एक मालिक का कब्ज़ा है। अब रस्सी के दस हिस्से हो गये और दस लोग अपना-अपना हिस्सा लेकर के चल दिये। हमारा मन भी ऐसा है। हमारे मन के दस मालिक हैं जो उसे दस दिशाओं में खींच रहे हैं और उसके दस टुकड़े कर दिए हैं और उस पर दस अलग-अलग लोगों का कब्ज़ा है और ये सारे टुकड़े आपस में लड़ रहे हैं, क्योंकि इनके अलग-अलग मालिक हैं। उन मालिकों की आपस में पटती नहीं है। लड़ाई वो कर रहे हैं और युद्ध स्थल क्या बना हुआ है हमारा मन। लड़ वो रहे हैं और झेल को रहा है हम, इसी का नाम तनाव है।

इसी का नाम तनाव है। मन के एक हिस्से पर भविष्य ने कब्जा कर रखा है। हमें बता दिया गया है कि भविष्य बहुत महत्वपूर्ण है तो भविष्य खींच रहा है उसका क्या होगा आगे कैरियर, ये, वो।

मन के एक हिस्से पर अतीत ने कब्ज़ा कर रखा है। मन के एक हिस्से पर पढ़ाई ने कब्ज़ा कर रखा है। मन के एक हिस्से पर मनोरंजन ने कब्ज़ा पर रखा है। एक हिस्से पर धार्मिकता ने कब्ज़ा कर रखा है। एक हिस्से पर दोस्तों ने, यारों ने। एक हिस्से पर परिवार वालों ने और ये सब आपस में…

आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org

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