हम डरते क्यों हैं?

आचार्य प्रशांत: हम में से कितने लोग हैं जो कभी-न-कभी या अक्सर डर अनुभव करते हैं? कृपया अपना हाथ उठाएँ!

(करीब-करीब सभी अपने हाथ उठा लेते हैं)

आचार्य (हाथ उठाते हैं): मैं भी आपके साथ हूँ, तो मेरा भी हाथ उठा हुआ है।

(श्रोतागण मुस्कुराते हैं)

हम में से शायद ही कोई ऐसा हो जो डर से अछूता हो। कोई भी नहीं होगा। ये डर है क्या? आपमें से कितने लोगों को कुछ लोगों के सामने, या एक भीड़ के सामने सार्वजनिक रूप से बोलने में डर लगता है? चलो तुममें से ही किसी एक को लेते हैं।

नदीम, तुम ज़रा खड़े हो जाओ। (एक श्रोता की ओर इंगित करते हुए)

क्या तुम्हें लोगों के सामने बोलने में डर लगता है?

प्रश्नकर्ता: हाँ।

आचार्य: अच्छा, अभी यहाँ करीब दो-सौ लोग मौजूद हैं, पर क्या अभी, इस वक़्त, जब तुम मुझसे बात कर रहे हो, तुम्हें डर लग रहा है?

प्र: नहीं।

आचार्य: ठीक अभी डरे हुए नहीं हो, पर वैसे डर लगता है।

प्र: पहले डर लग रहा था।

आचार्य: फिर से बोलो, ज़रा ज़ोर से।

प्र: खड़े होने के पहले डर लग रहा था।

आचार्य: पर यहाँ तो इतने सारे लोग हैं, पर अभी डर लग रहा है क्या?

प्र: नहीं।

आचार्य: बैठ जाओ। ये जो अभी बात हुई इसे बड़े ध्यान से समझिए। सैकड़ों की भीड़ के सामने बोलने में सिर्फ…

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org