हम ज़िंदा हैं क्या?
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प्रश्नकर्ता: आचार्य जी प्रणाम, आपका एक वीडियो देखा जिसमें आप बता रहे थे कि शरीर की औकात राख भर की है। ये तो हमें भी पता है कि एक दिन मरना है। पर मौत के डर से क्या जीवन का आनंद लेना छोड़ दिया जाए?
आचार्य प्रशांत: अरे नहीं, क्या गज़ब कह दिया! तुम लो न आनंद। तुम्हारी शक्ल पर पुता हुआ है आनंद। तुम लेते चलो। कह रहे हैं, “आचार्य जी ये तो हम भी जानते हैं कि एक दिन मर जाना है। आप बार-बार मौत काहे याद दिलाते हो? कोई वीडियो आता है, ‘ये है शरीर की औकात।’ कभी वीडियो आता है, ‘औकात राख की, बात लाख की’।” वहीं से आया है ये कमेंट।
कह रहे हैं, “ये सब बातें मत किया करो। ये हम जानते हैं मर जाना है। अभी तो मज़े ले लेने दो।” भाई अध्यात्म परम मज़े की बात है। अध्यात्म इसलिए है क्योंकि तुम मज़ा ले नहीं पा रहे। तुम्हारी शक्ल मनहूस है। तुम मज़े ले रहे होते तो बेचारे ऋषियों-मुनियों को क्या पड़ी थी कि इतने मोटे-मोटे ग्रंथ तुम्हारे लिए छोड़ कर जाते? तुम क्या सोचते हो ऋषि कौन होता है? ऋषि वो होता है जिसको ज़बरदस्त मज़े मारने हैं। वो ज़बरदस्त मज़ा हम जानते ही नहीं। तो हमको लगता है कि ऋषि तो मज़े लेता नहीं। वो बहुत बड़े मज़े लेता है। कईयों ने बोला था न, “मैं परम अय्याश हूँ।”
अध्यात्म परम अय्याशी का विज्ञान है। वो ऐसे मज़े लेता है कि उसने अपनी अवस्था के लिए उस शब्द को भी छोड़ दिया जिस शब्द का इस्तेमाल हम अपनी प्रसन्न अवस्था को वर्णित करने के लिए करते हैं। हम जब खुश होते हैं, प्रसन्न होते हैं तो हम उसे कह देते हैं प्रमोद। हम कह देते हैं खुशी, हर्ष, पुलक। ये सब बोल देते हैं न। उन्होंने कहा, “हम जो अनुभव करते हैं वो तुम्हारी खुशी से इतनी दूर की और इतनी ऊँची बात है कि हम उस शब्द का भी इस्तेमाल नहीं कर सकते जिस शब्द का तुम इस्तेमाल करते हो।” तो तुम कहीं नहीं पढ़ोगे कि फलाने ऋषि इतनी तपस्या करने के बाद बड़े प्रसन्न हो गए। वो कहेंगे ही नहीं प्रसन्न हो गए। वो कहते हैं कि वो समाधिस्त हो गए, कहेंगे कि आत्मस्त हो गए, ब्रह्मस्त हो गए, आनंदित हो गए। विलीन हो गए, युक्त हो गए, आरूढ़ हो गए। ऐसे शब्दों का इस्तेमाल करते हैं।
तुमने कभी सोचा, तुम कभी जब खुश होते हो तो बोलते हो, “मैं आरूढ़ हो गया”? बोलते हो? वो जब खुश होते हैं तो बोलते हैं, “अब हम युक्त हो गए।” युक्त हो गए माने योग हो गया। तुम्हारी खुशी का मतलब होता है भुक्ति। भुक्ती माने भोग हो गया। उनकी खुशी का मतलब होता है युक्ति। युक्ति माने योग हो गया। सोचो तो कि उन्होंने शब्द भी काहे को दूसरे पकड़ लिए? अपनी ऊँची हालत को दर्शाने के लिए, क्योंकि वो हालत हमारी हालत से बहुत ज़्यादा ऊँची है। हमारा एक रुपये का मज़ा उनका करोड़ का मज़ा। और उनका करोड़ का मज़ा इसीलिए है क्योंकि उन्हें वो बातें याद हैं जो बातें मैं तुम्हें…