हम ऐसे बदलेंगे नौकरशाही, राजनीति, और देश को
लोग कहते हैं सिस्टम को बदलना है तो सिस्टम के भीतर जाना होगा इत्यादि। अरे बाबा, तुम अपनी औकात को देखो और सिस्टम को देखो। कौन किसको बदल देगा, बताओ? जब तुम्हारा और सिस्टम का आमना सामना होगा, तो निश्चित रूप से दोनों एक दूसरे को प्रभावित करेंगे। तुम व्यवस्था को बदलोगे और व्यवस्था तुम्हें बदलेगी, पर ज्यादा कौन बदलेगा? सेब और धरती के बीच गुरुत्वाकर्षण होता है। जब सेब धरती की ओर आता है तो धरती भी थोड़ा-सा सेब की ओर आती है। ऐसा नहीं है कि सिर्फ सेब गति करता है; धरती भी गति करती है। लेकिन सेब ही सारी गति करता है, धरती इतनी कम गति करती है कि पता भी नहीं चलता। धरती का डिस्प्लेसमेंट इतना कम है कि पता ही नहीं चलेगा; सेब का ही पता चलेगा। तो सेब और धरती में जो रिश्ता है, वो ही रिश्ता एक व्यक्ति और पूरे तंत्र में है।
व्यक्ति भी तंत्र को बदलेगा और तंत्र भी व्यक्ति को बदलेगा, पर व्यक्ति तंत्र को आमूलचूल बदल दे, ऐसा बड़ा मुश्किल है। ऐसा भी तब होगा जब सड़क का आम आदमी बदले क्योंकि तंत्र भी जो लोग स्थापित कर रहे हैं, वो किस के प्रतिबिंब हैं? सड़क के आम आदमी के। तो जब तंत्र को बदलने के लिए सड़क के आम आदमी की ही सहमति चाहिए, तो फिर मैं तंत्र के भीतर कोशिश क्यों करूं? मैं बाहर आकर के देश के आम नागरिक को बदलने की कोशिश करूंगा ना? तो वो करा है।
आम आदमी अगर बदल गया, तो सारी व्यवस्था बदल जाएगी। बदल जाएगी या नही? तो जरूरी है कि आम नागरिक की चेतना को जागृत किया जाए, फिर सारी व्यवस्थाएं बदल जाएँगी, फिर कलेक्टर, कमिश्नर, प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति सब बदल जाएंगे। इसलिए छोड़ी थी…