हम आख़िर चाहते क्या हैं?

सबसे पहले यह समझना होगा कि शरीर जिसमें मस्तिष्क भी शामिल है, इसको आध्यात्मिक तल पर कुछ भी समझने की न तो आवश्यकता है और न उत्सुकता है। मस्तिष्क एक यंत्र है जिसको बखूबी पता है कि उसे कैसे काम करना है।

जो अशांत है, वो कोई और है। उसको अहम् वृत्ति जानिए।

अब अहम् शरीर से पूरी तरह संलग्न हो चुका है। अहम् को कुछ अपूर्णता है और इसीलिए वो शरीर से जाकर जुड़ गया है।

जब अहम् विचारों से चिपक जाता है तो उसे चेतना कहते हैं। हमारी चेतना अहम् मिश्रित चेतना है। हम जो भी देखते हैं, अहम् के केंद्र से ही देखते हैं।

आप अपने हर तर्क को बचाना चाहते हो चाहे उस विषय से आपका कोई सरोकार ही न हो क्योंकि आप तर्क से खुद को अलग ही नहीं जान पाते। वास्तव में आपको जो कुछ भी होता हुआ मालूम हो, वो सब चेतना में ही हो रहा है। अब हर घटना से आपने खुद को जोड़ लिया है। जहाँ भी अहम् को दिखाई देता है कि कुछ लाभ हो जाएगा, ये वही केंद्रित हो जाता है भले ही ऐसा करने की कोई उपयोगिता न हो।

जब अहम् अर्थात् आप ये जान जाते हैं कि शरीर से संधि करके आपने अपना नुकसान ही किया है तो फिर आप उससे अलग होना चाहते हैं और तब आपको आकाश साफ़ दिखाई देता है। आप देख पाते हैं कि वस्तुतः आकाश ही है, आप कहीं नहीं हो।

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org