हमेशा कुछ बुरा होने की शंका बनी रहती है
प्रश्नकर्ता: आचार्य जी, प्रणाम।
मेरे मन में आंतरिक हलचल बनी रहती है, हमेशा ही डर-सा लगा रहता है। फोन बजता है तो लगता है कि कोई बुरी खबर ही आएगी। सोते समय यह प्रतीत होता है कि शरीर सो गया, पर मस्तिष्क लगातार चलता जा रहा है। कृपया राह सुझाएँ।
आचार्य प्रशांत: क्या कहता है डर?
प्र: लगता है कि कोई अनहोनी न हो जाए घर में, परिवार में।
क्योंकि पहले ही दो घटनाएँ हो चुकी है, पहले पिता की, फिर पत्नी की मृत्यु हो गयी।
उसके बाद से फिर डर लगा रहता है। एक बच्चा भी है। जैसे आज दोपहर जब मैं यहाँ ग्रंथ पढ़ रहा था, तो उस समय घर से फोन आया, बच्चे की तबीयत थोड़ी खराब हो गई थी, तो मैंने बोला कि डॉक्टर से परामर्श करके दिखा दो, तो बोले कि ठीक है। लेकिन अंदर से एक डर बन गया, कि कुछ हादसा वगैरह न हो जाए।
आचार्य: देखिए दो बातें हैं, समझनी ज़रूरी हैं।
पहली बात;
अगर कुछ आवश्यक है और उसको लेकर शंका हो रही है, तो शंका हमेशा निर्मूल नहीं होती। शंका अपने-आपमें निश्चित रूप से कोई अवांछित चीज़ हो ऐसा नहीं है। मैं इसको उठाऊँ (हाथ में चाय का कप उठाते हुए) और इसका स्वाद मुझे थोड़ा अलग और अजीब लगे, और मुझे शंका हो कि बात क्या है, और मैं इसका ढक्कन हटा करके थोड़ा अंदर झाँकूँ, तो ठीक ही है न? शंका आवश्यक रूप से अवांछित नहीं होती।
तो जब शंका उठे तो शंका के तथ्य में जाएँ, और जाँच-पड़ताल कर लें, कि चल क्या रहा है वहाँ…