हमारे रिश्तों की वास्तविकता
चले गए सो ना मिले, किसको पूछूँ बात।
मात — पिता सुत बान्धवा, झूठा सब संघात।।
~ संत कबीर
आचार्य प्रशांत: जो कुछ भी जन्म से आया है, जो कुछ भी जीवन में मिला है, वो तो चला ही जाना है। इनके आने और जाने को अगर परख लिया, तब तो सत्य फ़िर भी परिलक्षित हो सकता है, लेकिन ये स्वयं सत्य नहीं बता पाएँगे। जो कुछ भी आया है वो तो ख़ुद द्वैत में है। वो कैसे अद्वैत का पता देगा?