हमारे रिश्तों की वास्तविकता

चले गए सो ना मिले, किसको पूछूँ बात।
मात — पिता सुत बान्धवा, झूठा सब संघात।।
~ संत कबीर

आचार्य प्रशांत: जो कुछ भी जन्म से आया है, जो कुछ भी जीवन में मिला है, वो तो चला ही जाना है। इनके आने और जाने को अगर परख लिया, तब तो सत्य फ़िर भी परिलक्षित हो सकता है, लेकिन ये स्वयं सत्य नहीं बता पाएँगे। जो कुछ भी आया है वो तो ख़ुद द्वैत में है। वो कैसे अद्वैत का पता देगा?

कृष्ण, अर्जुन से कहते हैं, “सत्य एक है। जन्म और मृत्यु के मध्य, समय में, तुम्हें वो व्यक्त लगता है, अन्यथा अव्यक्त है।” बाकी समय अव्यक्त, क्योंकि समय है ही जन्म और मृत्यु के बीच में। अब कोई सत्य को जन्म और मृत्यु के बीच में बाँधने की कोशिश करे, तो उसे क्या मिल जाना है?

“मात — पिता सुत बान्धवा, झूठा सब संघात”

इनमें से कोई नहीं है जो कोशिश करके भी तुम्हारे साथ रह सके। नीयत में इनकी कोई ख़राबी ना हो, तो भी ये साथ नहीं निभा सकते तुम्हारा, और ना तुम इनका। कर सकते हो किसी को वादा कि, “तुम्हारे साथ चलूँगा दस साल तक”? अपना पता है तुम्हें कुछ? ना तुम वादा कर सकते हो, ना किसी के वादे की कोई कीमत है। वास्तव में देखो तो दो दिन का वादा करना भी ख़तरनाक है, क्योंकि तुम्हें अपना दो दिन का भी क्या पता।

ये बातें बहुत ध्यानी मन के लिए हैं, बड़े विचारवान लोगों के लिए हैं। जो आम ज़िंदगी में खपा हुआ हो, उसके लिए वास्तव में इस दोहे के कोई अर्थ है नहीं। ये दोहा तो उसे बस परेशान ही करेगा। कबीर से वो और दूर हो जाएगा ये…

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org