हमारे जीवन के युद्ध और कृष्ण की समीपता!
आचार्य प्रशांत: श्रीकृष्ण की निकटता सीखनी है अर्जुन से; अर्जुन के भीतर का कोहरा उधार नहीं ले लेना है। और हमारी हालत ज़बरदस्त है, हमारे पास वो सब कुछ है जो अर्जुन के पास है, बस एक चीज़ नहीं है। हम हर मायने में अर्जुन हैं, अर्जुन का पूरा नर्क हमारे पास है; बस अर्जुन की एक चीज़ नहीं है हमारे पास, क्या? कृष्ण। क्या खूब हैं हम! जो कुछ भी अर्जुन का ऐसा है कि त्याज्य है, भ्रमित है, वो हममें और अर्जुन में साझा है। बस एक चीज़ है जो अर्जुन को बचा लेती है, उसका कहीं अता-पता नहीं हमारे जीवन में — कृष्ण।
जो कुछ अर्जुन के अंतस में है, वो आपकी विवशता है; विवशता समझी जा सकती है क्योंकि उसको हम गर्भ से ले कर पैदा होते हैं। ये अर्जुन के मन में जो कोहरा छाया हुआ है, वो अर्जुन भर का नहीं है; वो मनुष्य मात्र का है, वो सबका है और वो सब हमलोग ले कर पैदा होते हैं। तो उसकी क्षमा है, हम विवश हैं, हम क्या करें। कृष्ण विवशता नहीं होते, कृष्ण चुनाव होते हैं। कृष्ण मजबूरी नहीं होते, कृष्ण आपकी स्वतंत्रता के प्रतीक हैं। आपके पास ये विकल्प था, स्वतंत्र निर्णय करने का अवसर था कि आप कृष्ण को अपना बना लें, कृष्ण की निकटता को चुन लें। आपने चुना या नहीं चुना ये आप जानिए।
अर्जुन जैसे आप हैं, ये बात तो स्पष्ट है, सर्वमान्य है, निर्विवाद है। एक तरह से आप निर्विकल्प हैं अर्जुन होने में। सब अर्जुन पैदा हुए हैं। हाँ, किसी अर्जुन का नाम अर्जुन है, किसी अर्जुन का कोई और नाम हो सकता है; सब अर्जुन हैं। अर्जुन पैदा होने के बाद आपको तय करना होता है कि कृष्ण का सामीप्य चाहिए या नहीं; वो आपको चुनना होता…