हमारे छह दुश्मन
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बहुत पुराना ग्रंथ है हमारा — श्रीमद्भगवद्गीता, इतना तो हम सब जानते ही हैं। उसमें इंसान के छह शत्रुओं की, छह दुश्मनों की बात करी है श्री कृष्ण ने।
ठीक है?
उनको नाम दिया है — षड-रिपु(छह दुश्मन)
और क्या हैं वो?
काम, क्रोध, मद, मोह, मात्सर्य और लोभ।
ठीक है?
काम माने — इच्छाएँ क्रोध माने — इच्छाओं की पूर्ति न होने पर उठने वाली उत्तेजित भावना। मद माने — नशा(चेतना का अभाव)। मोह माने — किसी से जुड़ ही जाना। ऐसे जुड़ जाना कि उसके बिना अपने-आपको कमज़ोर समझने लगना, उसपर आश्रित हो जाना। मात्सर्य माने — ईर्ष्या, जेलसी। और लोभ तो जानते ही हैं हम — लालच, ग्रीड।
ये हमें सब-के-सब सताते हैं, सब परेशान करते हैं। और ये छह अलग-अलग नहीं हैं। अभी मैं अगर आपसे पूछूँ कि इनमें से कौन-सा है जो आपके लिए सबसे ज़्यादा रेलेवॅन्ट, प्रासंगिक है, तो शायद अलग-अलग लोग अलग-अलग शब्द पर उँगली रखेंगे। कोई कहेगा, “मुझे क्रोध ज़्यादा आता है”। कोई कहेगा, “मैं मोह से ज़्यादा ग्रस्त हूँ”। कोई कहेगा, “डरा हुआ रहता हूँ”। कोई कहेगा, “लालच पकड़ लेता है कभी-कभी”। लेकिन ये छह-के-छह एक संयुक्त परिवार है, ये साथ-साथ ही रहते हैं। ऐसा तो हो सकता है कि इनमें से कोई एक किसी समय पर आपको लगे कि आप पर चढ़ा हुआ है, प्रबल है, लेकिन इसका मतलब ये नहीं हुआ कि बाकी पाँच अनुपस्थित हैं। वो बाकी पाँच भी हैं, वो बस छुपे हुए हैं। बाकी पाँच भी हैं, बस छुपे हुए हैं।
तो हम सबको परेशान करने वाले ये छह दुश्मन, ये षड-रिपु अलग-अलग नहीं हैं, एक ही हैं। फिर एक ही हैं तो इनका कोई संयुक्त नाम भी होना चाहिए, कोई एक साझा नाम भी होना चाहिए। इनका वो साझा नाम है — अहम्, ‘मैं’ भावना।
हम जब कहें कि मैं इस चीज़ से परेशान हूँ या उस चीज़ से ग्रस्त हूँ या ये चीज़ मुझे पकड़ी हुई है, तो उस परेशानी का एक त्वरित इलाज मिल सकता है अगर हम उसी वक्त पर ज़रा-सा रुक करके, बस पाँच सेकेंड रुक करके ये पूछ लें कि, “कौन परेशान है? ये कौन है जो परेशान है? और जो परेशान है, उसका क्या छिन जाने वाला है? और जिस चीज़ के लिए परेशान है, मान लो पाने के लिए, अगर उसको पा लिया तो क्या मिल जाने वाला है?”
अगर ज़रा-सा ठहर करके बस ये जिज्ञासा कर लें, तो बिल्कुल ज़ाहिर हो जाएगा कि ये जो छह दुश्मन हैं, ये बाहरी नहीं हैं, ये हमारे भीतर ही हैं, और इन छहों दुश्मनों का जो एक नाम है, वो है — अज्ञान; जिज्ञासा न करना। जिज्ञासा करने से उत्तर मिलता है न? उसी का नाम ‘ज्ञान’ है। अहम् पलता है जिज्ञासा के अभाव में; जिसने पूछा नहीं, जिसने ठहर करके जाँच-पड़ताल नहीं की, उसी के भीतर भ्रम, अँधेरा, अज्ञान घूमता…