हमारी खुशियाँ दूसरों पर निर्भर क्यों?
तुम्हें दुनिया से जाकर के अनुमति लेने की जरुरत नहीं है कि ‘मैं कुछ हूँ या नही हूँ’। एक ठसक रखो अपने भीतर कि ‘जैसे भी हैं, बहुत बढ़िया हैं’। मैं अहंकार की बात नही कर रहा हूँ। मैं इस श्रद्धा की बात कर रहा हूँ कि ‘अस्तित्व मेरा हक है’, कि ‘यदि हूँ तो छोटा या बुरा या निंदनीय नही हो सकता’। दुनिया में कुछ भी ऐसा है जो है तो पर उसे होना नही चाहिये था? दुनिया में कुछ भी ऐसा है क्या? कुछ भी ऐसा दिखा दो — छोटे से छोटा घास का तिनका भी…