हमसे ज़्यादा शक्तिशाली कौन!

प्रश्नकर्ता: आचार्य जी प्रणाम, हमारा मन शरीर से ज़्यादा बलशाली है। और आत्मा के विषय में गुरुजनों से सुना है कि मन से भी ज़्यादा बलशाली है। ऐसा क्यों होता है कि हम भूल-चूक करते हैं और क्या इसका मतलब यह हुआ कि भूलना जो कि मन के तल पर होता है वह अंततः सत्य से भी ज़्यादा शक्तिशाली है?

आचार्य प्रशांत: हाँ बिलकुल, सत्य को शक्तिशाली कहना कोई बहुत सार्थक बात नहीं है, ना ही कोई बहुत उपयोगी बात है। तात्विक दृष्टि से सत्य ना शक्त है ना अशक्त है। इसीलिए भारत ने शिव और शक्ति की अवधारणा रखी। कहा — शिव, शिव हैं। उनको शक्तिमान बोलना या शक्तिशाली बोलना उचित ही नहीं है। उनका शक्ति के आयाम पर अस्तित्व…

आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org