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हकलाने का इलाज

प्रश्न: आचार्य जी, मुझे हकलाने की समस्या है। लोग कहते हैं कि यह अर्द्धचेतन मन की आदत है। कृपया प्रकाश डालने का कष्ट करें की यह अर्द्धचेतन मन का क्या महत्त्व है हमारे जीवन में।

आचार्य प्रशांत जी: हकलाने, या न हकलाने का ही क्या महत्त्व है जीवन में? क्या नाम बताया?

प्रश्नकर्ता: गौरव।

आचार्य जी: गौरव। इतने लोग हैं जो नहीं हकलाते, वो क्या स्वर्ग में जी रहे हैं? अभी अगर सिद्ध हो जाए कि तुम्हारा हकलाना मानसिक नहीं है, अपितु कोई शारीरिक ही बात है, तो? अभी तो शायद इस आशा में हो कि कोई मानसिक बाधा है, उसको हटा देंगे तो हकलाना हट जाएगा। अगर साबित हो जाए कि बात मानसिक नहीं है, शारीरिक है, बात सॉफ्टवेयर की नहीं है, हार्डवेयर की है, कि ये तुम्हारा हकलाना मिट ही नहीं सकता, तो क्या करोगे? मन पर बोझ लिए घूमते रहोगे?

‘हकलाना’ इतनी बड़ी बात है ही क्यों? हकलाते हो, तो हकलाते हो। क्या हो गया? अष्टावक्र आठ जगह से टेढ़े थे, क्या हो गया? हकला नहीं भी रहे हो, तो उससे भला कौन-सा लाभ मिल जाना है? दुनिया की निन्यानवे प्रतिशत लोग शायद नहीं हकलाते, तो? ये मुद्दा ही छोटा है। इस मुद्दे की अवहेलना करना सीखो।

और इस मुद्दे की उपेक्षा नहीं करोगे तो ऐसे मुद्दे तो एक-के-बाद-एक आते ही रहेंगे। फ़िर कहोगे कि — “पाँच फुट छः इंच का हूँ, आचार्य जी, चार इंच ऊँचाई और मिल सकती है क्या?” फ़िर कहोगे, “ज़रा गेहुँए रंग का हूँ, गोरा हो सकता हूँ क्या?” फ़िर कहोगे, “वज़न थोड़ा ज़्यादा है, किसी तरह कम हो सकता है क्या?”

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant
आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

Written by आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org

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