हँस लो, रो लो, मज़े करो

प्रश्नकर्ता: आचार्य जी, कैसे पता करूँ कि अगर कोई मुझे कुछ समझा रहा है, तो वो मेरे लिए ठीक है या नहीं? कैसे पता करूँ कि मेरी ज़िंदगी अंधेरे की तरफ़ बढ़ रही है, या रोशनी की तरफ़?

आचार्य प्रशांत: बात सीधी है। नज़र साफ़ होने लगी हो, बेहतर दिखाई देने लगा हो, तो जान लो कि रोशनी की तरफ़ बढ़ रहे हो। जो बातें पहले उलझी-उलझी थीं, अगर वो अब सरल और सुलझी हुई हो गई हैं, तो जान लो कि रोशनी की तरफ़ बढ़ रहे हो। और उलझने यदि यथावत हैं, तो जान लो कि अँधेरा क़ायम है।

एक ही तो सूत्र है, एक ही परख है – भ्रम का मिटना। जीवन से भ्रम अगर विदा होने लगे, तो जान लो कि जिस दिशा जा रहे हो, तुम्हारे लिए हितकर है। जब दिखाई देने लगे कि पहले जो सोचते थे, जैसे जीते थे, जो मानते थे, उसमें कहाँ खोट थी, कहाँ दोष था, तो जान लेना कि अब पहले से बेहतर हो गए हो।

तरीक़े और भी हैं। पाओ कि अब क्षमा करना आसान रहता है, मन में प्रेम ज़्यादा है, तो समझ लेना कि गति सही दिशा में हो रही है। पाओ कि अब चोट ज़रा कम लगती है, प्रभावित कम होते हो, भावनात्मक उतार-चढ़ाव ज़रा शिथिल हो गए हैं, तो जान लेना कि सही दिशा में हो। पाओ कि अब डर कम सताता है, पकड़ी हुई चीज़ों को छोड़ने को ज़्यादा तैयार हो, तो जान लेना कि सही दिशा में हो। पाओ कि अब झुकने को ज़्यादा तैयार हो, तो जान लेना कि ठीक जा रहे हो।

स्वास्थ्य हज़ारों तरीक़ों से अपनी घोषणा कर देता है। जो कर पाने में कल तक असमर्थ थे, अगर आज वो सहजता से होने लगे, तो लक्षण शुभ हैं। कल के दर्द आज आसानी से मिटने लगें, तो जान लेना कि खानपान, चर्या, व्यवहार सम्यक है; कहीं-न-कहीं से दवाई मिल रही है। पाओ कि अकारण मुस्कुराना अब ज़रा आसान हो गया है; दाम नहीं माँगते तुम मुस्कुराने के अब, दुनिया पर एहसान नहीं करते थोड़ी-सी मुस्कुराहट बिखेरकर; पाओ कि यूँ ही मग्न रहते हो बिना बात के, बुद्धू जैसे, तो जान लेना कि कुछ अच्छा ही हो रहा होगा।

नींद बेहतर आती होगी,(हँसते हुए) खाना बेहतर पचता होगा, जो चीज़ें छिन गईं, वो कम याद आती होंगी, जो चीज़ें मिलनी हैं, वो कम रिझाती होंगी — अच्छा है। पाने में विनम्रता आने लगती है, छोड़ने में मौज़ आने लगती है। कुछ मिलता है तो सिर आसानी से झुकने लगता है, कुछ बाँटते हो तो ऐसे बाँटते हो जैसे बाँटने से तुम्हें ही कुछ मिल गया।

कसौटियाँ तो और भी हैं, पर कहीं तुम उनमें उलझ न जाओ।

तुम दुनिया को समझने लगोगे और दुनिया को तुम समझ में आने ज़रा बंद हो जाओगे। ये अक्सर होता है।

जो लोग दुनिया को समझने लगते हैं, फिर दुनिया को वो कम समझ में आते हैं।

दुनिया कहने लगती है, ये आदमी गड़बड़ है। और जब तक तुम दुनिया को समझते नहीं, दुनिया तुम्हें ख़ूब समझती है।

जब लोग तुम्हें देखकर ज़रा चकित होने लग जाएँ, तो समझ लेना कि कुछ तो हो रहा है। हाँ, वो उनका चकित होना कई बार तुम्हें भारी भी पड़…

आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org

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