10 min readApr 20, 2022
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हँसते हुए मुखौटे
आचार्य प्रशांत: एक आदमी था बड़ा भुल्लकड़। कोई एक चीज़ उसके साथ रहती थी, वो थी उसकी विस्मृतिशीलता। भूलता गया, भूलता गया, और एक दिन पाता है कि वो अपनी हँसी भी भूल गया; भूल ही गया कि हँसना कैसे है।
तो गया एक विशेषज्ञ के पास, कि, “हँसना भूल गया हूँ।“ उन्होंने कहा, “ये कौन-सी नई बात है? किसी किताब पर लिख लो कि रोज़ हँसना है। जब भी पढ़ोगे तो याद आ जाएगा कि रोज़ हँसना है।“ उसने कहा, “ठीक है।“